Saturday, April 7, 2012

सद्वृति‍ :: जगदीश मण्‍डल


सद्वृति

स्कन्द पुराणक कथा थिक। एकबेर कात्यायन देवर्षि नारदसँ पुछलकनि- भगवान, आत्म-कल्याणक लेल भिन्न-भिन्न शास्त्रमे भिन्न-भिन्न उपाए आ उपचार बताओल गेल अछि। गुरुजन सेहो अपन-अपन विचारानुसार कते तरहक साधन-विधानक महात्म्य बतौने छथि। जेना- जप, तप, ति‍याग, वैराग्य, योग, ज्ञान, स्वध्याय, तीर्थ, व्रत, धि‍यान-धारण, समाधि इत्यादि अनेको रास्ता कहने छथि। जे सभ करब असंभवे नै असाध्यो अछि। सामान्यजन तँ निर्णये ने कऽ सकैत अछि जे एेमे केकरा चुनल जाए? कृपा कऽ अपने एकर समाधान करियौक जे सर्वसुलभ सेहो होय आ सुनिश्चित मार्ग सेहो होय।

धि‍यानसँ नारद कात्यायनक बात सुनि कहलखिन- हे मुनिश्रेष्ठ, सद्ज्ञान आ भक्तिक एक्के मार्ग अछि। जे थिक मनुखकेँ सत्कर्ममे प्रवृत्त करब। स्वयं संयमी बनि अपन सामर्थ्‍यसँ गिरल आदमीकेँ उठबए आ उठलकेँ उछालैमे नियोजित करए। सत्प्रवृत्तिये असल देवी थिक। जकरा जे जत्ते श्रद्धासँ सिंचैत अछि ओ ओते विभूतिकेँ अर्जित करैत अछि। आत्म-कल्याण आ विश्व-कल्याणक समन्वित साधनाक लेल परोपकार-रत् रहब श्रेष्ठ अछि। चाहे व्यक्ति कोनो जाति आकि‍ धर्मक किएक ने होथि।

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