Friday, April 6, 2012

शिव कुमार झा “टिल्लू”- विहनि कथा- फूसि नै बाजू




आंगनमे राखल चौकीपर शंकर शान्त बैसल छल। माए आबि कऽ पुछलनु- “की भेल, किए उदास छी”? शंकर कानए लागल- “कृष्णचन्द्र भैया जखन देखैत छथि तँ कहैत छथि जे फूसि नै बाजू”। एना किए कहै छथि? शंकर कथा सुनबए लागल। टोलक किछु नेना क्रिकेट खेलबाक लेल गाछी गेल छल। विकेट नै रहए तेँ कैलाश कक्काक राहड़िक खेतसँ रंजीत किछु राहड़िक मोटगर गाछकेँ उखाड़ि विकेट बनौलक। क्षणहिमे कैलाश कक्का गाछी दऽ कऽ जाइत छलाह। अपन खेतक दशा देखि सभसँ पुछलनि जे राहड़िकेँ के उखाड़लक? केओ नै बाजल। ओहि दिन साँझमे पंचैती बैसाओल गेल। रंजीतकेँ पता छल जे मास्टर साहेब मात्र हमरेटासँ पुछताह। तेँ हमरा धमकी देलक – जौँ हमर नाओं कहबेँ तँ मारबौ, ललवाकेँ फँसा दही। हमहूँ डरक मारे ललवाक नाओँ बकि देलहुँ। ओकर बड़का भाए कृष्णचन्द्र भैया ओकरा बड़ मारि मारलनि। जखन ओ सत्यकेँ बुझलन्हि, तखनसँ खिसिआएल रहथि। शंकरक व्यथा सुनि माए अवाक् रहि गेलीह – अहाँ बड़ पैघ गलती कएलहुँ। लाला अहाँक प्रिय मित्र छथि, जाउ आ हुनकासँ माफी माँगि लिअ। भविष्यमे एहेन गलती नै करब। जाहि व्यक्तिसँ डर होइत अछि ओकरा संग मित्रता किए करै छी? निर्दिषक आत्मापर चोट नै पहुँचेबाक चाही। प्रण करू जे सदिखन सत्य बाजब, जौँ कतहु समस्या हुअए तँ चुप्प रहि जाएब मुदा झूठ नै बाजब।
माएक प्रेरणासँ शंकर सत्य हरिश्चन्द्र तँ नै भऽ सकल मुदा ओहेन झूठ नै बजैत अछि जाहिसँ ककरो आत्माकेँ दुःख पहुँचए वा सत्य कलंकित हुअए।

No comments:

Post a Comment