Friday, April 6, 2012

अनमोल झा - विहनि कथा- चेतना




-गिरहत पाँच सए रुपैय्याक पाँच सए सूदि कोना भेलै।
-रौ बहिं! जे तोरा बाप-पुरखाकऽ कहियो साहस नै भेलै पुछैक से तूँ पूछै छेँ?
-ओ दिन बिसरि जइयौ गिरहत! छह मासमे एतेक सूदि नै होइत छै। अबै छै दलुआ हम्मर स्कूलसँ तँ करत हिसाब!

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