Friday, April 6, 2012

डॉ. शेफालिका वर्मा - विहनि कथा-आनक बड़ाइ



                                     
भटकैत भूट्कैत  एकटा बड पुरान शिष्य  अपन गुरु लग पहुँचल . गुरु अपन शिष्य के देखि आह्लादित भ उठलाह ... की  हाल  छैक शिष्य सुन्दरम  , जीवन कोना बीती रहल अछि अहांके ?
हम ते बड अभागल छी महाराज...   कलपैत शिष्य बाजल ..
की भेल.. अहाँ ते ज्ञान क पोटरी ल क  एहि ठाम से गेल छी..
हम जाहि वस्तु कामना करैत छी वैय्ह हमरा से दूर भ जायत ऐछ.नै ते हम अर्थोपार्जन केलों आ नै ते जीवन क कोनो सुख भोग्लों .....
स्नेह भरल स्वरे गुरु बजलाह  ..अहाँ पहिने देवा लेल सिखु ,तखन लेवा क लेल सोचब..
हम की देब भगवन !  हमरा अछिए की ? नै ते धन दौलत , नै ते घर -गाड़ी , नहि कपडा लत्ता देब तं की देब ==निराश स्वर छल
अहाँ लग बहुत किछ ऐछ . अहाँ चाही त लोग  के बहुत किछ द सकैत छी
चौंकी उठहल  शिष्य --की ऐछ जे द सकैत छी हम ?
अहांके भगवन सुन्दर बोली  देने छैथ , अहाँ चाही तो ओकर उपयोग स लोग क तारीफ़ क सकैत छी . दोसर केर बड़ाई क ओकर ह्रदय मे ख़ुशी भरि सकैत छी, मुदा अहाँ ते एतेक दरिद्र  छी जे जाहि मे एको पाई नै खर्च होयत अछि , उहो नै क सकैत छी. आदमी के कंजूस नै हेवाक चाही, भगवन जे देने छैथ ओकरा जतेक बंटब ओतेक बडत..   ककरो बड़ाई करब ते अहांक अपने सम्पन्नता क
 भान होयत , मोने उदारता क भाव रहत अहाँ लग वाणी क धन ऐछ, ह्रदय के विशाल बनाऊ    एक बात जानि लिय ककरो बड़ाई केने से ओ पैघ नै होयत छैक वरन बड़ाई करय वाला  लोग क दृष्टि मे पैघ भ  जायत अछ .  अहाँ खाली पयबा लेल    जनैत  छी तैं  दुखी रहैत छी . जे   दैत  छैथ ओ देवता छैथ  आ  देवता  कहियो   अभावग्रस्त नै रहैत छैथ ...............
शिष्य  गुरु क पैर पर खसि पडल .............

No comments:

Post a Comment