Thursday, April 5, 2012

विहनि कथा- ठोकर



चमकैत शहरकेँ भीड़ भरल सड़क। सहरैत गाड़ी-घोड़ा, लोक-बेद। आठ बजि‍ गेल छलै। घर पहुँचबामे राति‍ बेसी ने भऽ जाए तहि‍ दुआरे सायकिलकेँ उड़ौने जा रहल अछि‍- घोरनमाँ। आकि‍ एकटा मोटर सायकि‍ल धड़ाक दऽ ठोकर मारलक। थकुचाएल सायकि‍ल तँ सड़केपर रहि‍ गेल कि‍न्तु  घोरनमाँ उछलि‍ कऽ फुटपाथपर धड़ाम दऽ गि‍रल। बाप-माए करैत कुहरि‍ रहल अछि‍। कलेजाक चोट प्राण घि‍चने जा रहल छै। परन्तुर ओहि‍ठाम के केकरा देखनि‍हार।
     ओहि‍ बाटे जाइत एकटा पॉकि‍टमारकेँ दया लागि‍ गेलै। ओ लग जा कऽ कुहरैत घोरनमॉंकेँ लहु पोछए लगल। फेर अपन काजक मोन पड़ल तँ घोरनमॉंक सभ जेबीक तलाशी लेलक। कि‍न्तु‍ कि‍छु नहि‍ भेटलै। फनकैत पॉकि‍टमार उठल आ बाजल- “रे बेकुफ, मारि‍तोकाल दस टका जेबीमे रखि‍तेँ से नहि‍। भि‍खमंगा कहीं के सगुण खराब कऽ देलक।‍”
  कुहरैत घोरनमॉं बाजल- “रे मुरख दस टका जँ जेबीमे रहि‍तै तँ हमहुँ ने दोसराकेँ ठोकर मारि‍तौं।‍”
  “इह, भेष देखहक आ उपदेश सुनहक।‍”- घुनघुनाइत पॉकि‍टमार बि‍दा भऽ गेल।

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