Friday, April 6, 2012

कौशल कुमार- विहनि कथा- अप्पन इज्जति




भरल देहक पन्द्रह वर्षक नवयौवना कहियौ वा बच्चा? नवयौवना नीक लगै छै कहैयोमे आ सुनैयोमे, गाड़ी काकरघाटी स्टेशनपर रुकलै तँ हमरा बगलमे सीट खाली भेलै तँ रेलमपेल बोगीमे बैस गेल। जाड़क मास रहै मुदा शीतलहरीमे जैकेट-टोपीक बादो ठण्डा लगैत छल तेँ हाथ छातीपर बन्हने गुड़मुड़ायल बैसल रही। एकटा सीटपर सातगोटे बैसल रही तैयो कोनो असुविधा नै बुझा रहल छल कारण हाथ-पएर पसारैमे भले असुविधा रहै मुदा कने जाड़ तँ कम लगै छल।
जखन ओ श्यामवर्ण नवयौवना गाँती बन्हने बगलमे बैसल तँ जेना करेँट लागल आ देहमे गर्मीक एकटा लहरि दौड़ि गेल। हम जे हाथ छातीपर बन्हने रही से ओकर कठीन  उभारसँ सटि गेल। कने काल हम पूर्ववत रहलौं मुदा जखन लागल ओकरा कोनो आपत्ति नै छै तँ हम्मर हिम्मति बढ़ि गेल आ हम गाँतिक अढ़मे अपन हाथ ओकरा छातीपर फेरऽ लगलौं, तैयो ओ किछु नै बाजल आ पूर्ववत रहल तँ अप्पन हाथ ओकर ब्लाउजमे सन्हिया देलिऐ। समएक संगे हम्मर मोन आ हिम्मति बढ़ैत गेल मुदा अइसँ बेसी किछु सम्भव नै छल तेँ एतबे अति कऽ रहल छलौं तावत गाड़ी उगना हाल्टपर पहुँचि गेलै।
एकटा प्रौढ़ जकाँ व्यक्ति तावत ओइ नवयौवनाक हाथ पकड़ि कऽ उठबऽ लगलखिन तँ ओ उठि गेल, तँ दोसर व्यक्ति जे शाइत कने हुनकर परिचित रहथिन, पुछलखिन- इहे बच्चा छिऐ लछुआक?
ओ प्रौढ़ हँ मे मूड़ी डोला देलखिन आ गेट दिस नवयौवनाकेँ लऽ कऽ ससरऽ लगला भीड़मे। दोसर व्यक्ति रिक्त स्थानपर बैसैत हमरा चिन्हैत टोकलनि- की मास्टर साहेब? कतऽ सँ आबै छी?
आब हमहुँ हुनका चिन्हलौं, ओ पण्डौलक रमेसर रहथि। उमेरक प्रभाव कने जल्दी हुनका लिबा देने रहनि।
हम पुछलियनि- के रहै ओ बच्चा?
आशय छल कहियो फेर मौका भेट सकए तँ!
एखन हम पूर्ण आन्हर भेल छलौं। हमर पोस्टिंग लगेमे सलेमपुर स्कूलमे छल। ओ लक्ष्मणक बेटी छलै, अहींक नानी गामक पुरहितक पोती। ओकरा स्कूलक नवका मास्टर ओकरा संगे कोना ने कोना फुसला कऽ जबर्दस्ती केलकै। तहियासँ मथसुन्न आ बौक छै। किछु नै बुझै छै आ ने बाजै छै। अहाँ सभ सन लोक खानदानी आनक बेटी-पुतहु आ बच्चाकेँ अप्पन इज्जति बुझऽबला लोक आब थोड़े रहलै माटसाब...रमेसर बजैत रहल मुदा हम्मर दिमाग सुन्न भेल जा रहल छल...। एक्केटा शब्द अहाँ सभ आनक बेटी-पुतहुकेँ अप्पन इज्जति बुझै छिऐ...दिमागमे फेर-फेर घुमि रहल छल।

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