Wednesday, April 11, 2012

कपटी दोस्त :: जगदीश मण्‍डल


कपटी दोस्त

एकटा सज्जन खढ़िया छल। ओ खढ़ि‍या कतेकोसँ दोस्ती केलक। दोस्ती ऐ दुआरे करैत जे बेरपर हमहूँ मदति करबै आ हमरो करत। एक दिन शिकारी कुत्ता ओकरा पकड़ैले खेहारलक। खढ़िया भागल। भागल-भागल अपन दोस्त गाए लग पहुँचि‍ कऽ कहलकै- अहाँ हमर पुरान दोस छी। कुत्ता हमरा रेबाड़ने अबैए। अहाँ ओकरा अपन सींगसँ मारि कऽ भगा दियौ जइसँ हमर जान बचि जाएत
खढ़ियाक बात सुनि गाए कहलकै- हमरा घरपर जाइक समए भऽ गेल। बच्चा डिरिआइत हएत। आब एक्को क्षण ऐठाम नै अँटकब।
गाएक बात सुनि खढ़िया निराश भऽ गेल। कुत्ता सेहो पाछूसँ अबिते रहए। खढ़िया गाए लगसँ पड़ाएल आ घोड़ा लग पहुँचल। घोड़ो पुरान दोस्त खढ़ियाक छलैक। घोड़ा लग पहुँचि‍ खढ़िया कहलकै- दोस, अहाँ अपना पीठपर बैसाए लिअ। जइसँ हमरा ओइ कुत्तासँ जान बचि जाएत
घोड़ा कहलकै- हमरा पीट्ठीपर केना बैसब? हम तँ बैसबे बिसरि गेलौं।
घोड़ाक बात सुनि खढ़िया निराश भऽ पड़ाएल। जाइत-जाइत गदहा लग पहुँचि‍ कहलकै- दोस, हम मुसीबतमे पड़ि गेल छी। अहाँ दुलकी चलब जनै छी से कनी कुत्ताकेँ मारि कऽ भगा दियौ, जइसँ हमर जान बचि जाएत
खढ़ियाक बात सुनि गदहा कहलकै- घरपर जाइमे देरी हएत तँ मालिक मारत। तँए हम जाइ छी।
फेर ओत्तौसँ खढ़िया भागल। जाइत-जाइत बकरी लग पहुँचि‍ कहलकै- दोस, हम मरि रहल छी। अहाँ जान बचाउ।
अपन ओकाइत देखैत बकरी उत्तर देलकै- दोस, झब दे ऐठामसँ दुनू गोटे भागू नै तँ हमहूँ खतरामे पड़ि जाएब।
बकरीक बात सुनि खढ़िया आरो निराश भऽ गेल। मनमे एलै जे अनका भरोसे जीअब बेकार छी। अपने बुत्ते अपन दुख मेटा सकै छी। भलहिं मन-मोताबिक जिनगी नै जीब सकी। तखन खढ़िया छाती मजगूत कऽ पड़ाएल। पड़ाएल-पड़ाएल एकटा झारीमे नुका रहल। कुत्ता देखबे ने केलकै। दौगल-दौगल आगू बढ़ि गेल। खढ़ियाक जान बचि गेलै।

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