Thursday, April 5, 2012

विहनि कथा- फुसि‍क फल


संत कवि‍र दासक पाँति‍ आछि‍- “साँच बरावर तप नही, झुट बरावर पाप जाके हृदय साँच है, ताके हृदय आप।‍”
  तातपर्य अछि‍- “सत्यआमेव जयते।‍”
  एक गोट फुसि‍केँ बचाबए हेतू सहस्त्र  फुसि‍ बाजए पड़ैत अछि‍। मुदा ओ स्थादयी रूपसँ नहि‍ पचि‍ सकैत अछि‍ कने देरे सही, फुसि‍ फुसि‍ए प्रमाणि‍त होइत अछि‍। गीतामे कृष्णय कहने छथि‍न- “जेसा कर्म करैगा वैसा फल देगा भगवान।‍”
     मोहनक छोट भाए सोहन मैट्रीकक बोड परीक्षा दऽ कऽ मधुबनीसँ घर आबि‍ रहल छलै। दुनू भाँइ संगे छल। रस्तागमे बि‍ना टि‍कट रेलगाड़ीसँ कि‍छु दूरी तँइ केलक मुदा कि‍छु दूरी तँइ करए हेतु ट्रेकर-मैक्सीन पकड़वाक खगता भेलै आ दुनू भाँइ मैक्सीिपर चढ़ि‍ गेलै। सोहनक अभि‍भावक मोहन लग भाड़ाक पाइ नै छलै। ओ सोचलक- “जँ हम साँच बाजि‍ दै छी तँ कन्टेसक्टेर मैक्सी सँ उताड़ि‍ देत। हम घर कोना जा सकव। जँ झुट जोरसँ बाजि‍ दैत छी तँ ओकरा हमरा लऽ जेनाइ मजबुरी भऽ जेतै।”
  कन्डजक्ट“र भाड़ा ओसलैत-ओसलैत मोहन लग आबि‍ कहलनि‍- “श्री मान् कतऽ जाएव।‍”
  मोहन जबाव देलक- “झंझारपुर।‍”
  कन्ड क्ट“र- “भाड़ा दि‍औ।‍”
  झट मोहन बाजि‍ उठल- “भाड़ा देलौं से?‍”
  कन्डोक्ट‍र- “अहाँ भाड़ा नै देलि‍ऐ, मन पारू।”
  मोहन- “मने-मन अछि‍।‍ मन िक पारू। भाड़ा हम अहाँकेँ दऽ देलौं।”
  कन्डोक्ट“र सोचलनि‍ भऽ सकै छै, एकरा लग पाइयक मजबुरी होय। मुदा एकरा फुसि‍ नै बजबाक चाही।‍ बजलाह- “जौ अहाँ लग भाड़ा नै अछि‍ तँ बाजू हम ओहि‍ना लऽ जाएव। मुदा बेकूफ नै बनाऊ।‍”
  मोहन- “एहि‍मे बेकूफक कोन गप्प ? हम अहाँकेँ भाड़ा देलौं, अहाँ मन पारू।‍”
  कन्ड क्ट“र खि‍सि‍आ कऽ पुछि‍ बैठलाह- “बाजू बेटा मरि‍ जाए, हम भाड़ा दऽ देलौं।‍”
  मोहन- “बेटा मरि‍ जाए, हम भाड़ा दऽ देलौं।‍”
  कन्ड क्ट“र कहलनि‍- “बेस चलु, आब भाड़ा नहि‍ मांगब।‍”
  सोहन अपन भैयाक फुसि‍ गप्प‍पर बड्ड आश्चलर्यमे पड़ल छल। मुदा बाजत तँ बाजत कि‍।
     गाम आबि‍ मोहन कि‍छुए दि‍नक बाद बोकारो गेलाह। कनि‍याक बड्ड जि‍द्द केलाक वाद हुनको संग लए गेलाह। संगमे दुगो बेटो छलनि‍। परि‍वारक संग पहि‍ले खेपि‍ बाहर गेल छलाह। ओना ओ बोकारो पॉंच साल पूर्वहि‍सँ रहैत छलाह। तीन महि‍नाक अंदर मोहनक छोटका बेटा रमन बेमार पड़ल। बोकारोमे बड्ड इलाज भेल मुदा ओ चंगा नहि‍ भेल। फेर ओ सपरि‍वार गाम आबि‍ गेलाह। गामोमे बड्ड इलाज भेल मुदा ओ बचि‍ नहि‍ सकल, मृत्युेक प्राप्तह भेल। परि‍स्थिा‍ति‍ वस सोहनकेँ ओकरा आगि‍ दि‍अए पड़लै। आओर मोहनकेँ ओकर उचि‍त कर्मो करए पड़लैक।
     एगो कहबी छै- “गज भरि‍ नै हारी, थान भरि‍ फारी।‍”

No comments:

Post a Comment