Friday, April 6, 2012

कपि‍लेश्वर राउत जीक २ टा वि‍हनि‍ कथा- १.कि‍सानक पूजी; २.कलियुगक निर्णए

कि‍सानक पूजी

 

मंगल भोरे धान काटए गेल से दूपहरि‍यामे घरपर अएल। घरपर अवि‍ते रौदेलहा धानक दौनी लेल खोंह छि‍टि‍ तैयारीमे मोस्‍तैज भऽ गेल।

जहि‍ना सरकार लेल मार्च महि‍ना हि‍साव-कि‍ताव आ आमद-खर्चक होइत छै तहि‍ना वनि‍या लेल दि‍वाली, पंडि‍त-पुरोहि‍त लेल यज्ञ आ दूर्गापूजा तहि‍ना गृहस्‍तक लेल अगहन। खन धान काटू तँ खन धान तैयार करू, खन गहूमक खेत जोत-कोर करू तँ खन गाए-भैंस-बरदकेँ सानी-कुट्टी लगाऊ। चन तरहक काज रहने मंगल परेसान रहैत छला।

साझू पहर मंगल जोगि‍न्‍दरक ओइ‍ठाम अागि‍ तपैले गेल। गप-सप्‍प होमए लगलै। मंगल बाजल- हौ जोगि‍न्‍दर भाय गप-सप्‍प कि‍ करब, काजे ततेक ऐछ जे परेशान-परेशान रहैत छी। झरो फि‍रेक फुरसत नै रहैत अछि‍। ताहूमे अगहनमे।‍

जोगि‍न्‍दर बाजल- एतेक परेशान होइक कोन काज छै आब तँ धान खेतक जेाताइसँ लऽ कऽ दौनी तकक लेल थ्रेसर, ट्रेक्‍टर, गहूम बाउग करैले मशीन चन तरहक‍ मशीन सभ भऽ गेलैहेँ। तँए परेशान हेबाक कोनो जरूरत नै छै। एकटा कहबी छै जे पूत परदेश गेल देव पि‍तर सभसँ गेल। से नै ने करऽ दि‍मागसँ काज लएह। आ सभ दि‍स नजरि‍ राखह।

मंगल बाजल- से तँ ठीके कहै छहक। एकटा परेशानी रहए तब ने। लऽ दऽ कऽ एकटा बेटा ऐछ छोड़ा अवण्‍ड भऽ गेल ऐछ। केतनो कहै छि‍ऐ जे मन लगा कऽ पढ़-ि‍लख जे दू अक्षरक बोध हेतो तँ अपने काज देतो से करि‍ते ने ऐछ। एकटा मोवाइल कि‍न लेलकहेँ आ हरदम गीत-नादक पाछाँ अपसि‍यात रहैत अछि‍। कि‍ कहब गहूमक बि‍आ 80 कि‍लो एकटा कोठीमे रखने रही से की केलक तँ कखैन ने कखैन सभटा बीआ बेच लेलक आ एकटा मोवाइल कीन लेलक। तुहीं कहऽ आब खेती केना करब छौड़ा बदमास भऽ गेल।‍

जोगि‍न्‍दर बाजल- ई तँ बड़ खराब काज भेलै। जहन पूजि‍ये चोरा कऽ बेच लेत तँ कोनो परि‍वारकेँ गुजर-वसर आकि‍ उनैत केना हेतै। एक कोठी अनाज तँ पूजी नै ने होएत छै, पूजी तँ बीआक लेल जे राखल जाइत छै सएह ने होइत छै। जैसँ अधि‍क उपजा आकि‍ आमदनी होइ सएह ने पूजी भेल। जँ पूजीये कि‍यो खा गेल तँ सभटा बस्‍तु खा गेल।‍

मंगल खैनी झारैत आगू बाजल- एक तँ रौदीक मारल छी दू बीघामे धान छल, उपरका खेतक धान तँ मारल गेल, नि‍चला खेतक धान कि‍छु भेल। तैपरसँ छोड़ा बि‍ए बेच लेलक। आब बीआ खरि‍दू कि‍ खाध खरि‍दू कि‍ खेत जोताऊ। अही सबहक सोचमे परल छी।‍

जोगि‍न्‍दर बाजल- खएर परेशान हेबाक जरूरत नै छै। एकटा कहबी छै जे चि‍न्‍तासँ चतुराइ घटे शोकसँ घटे शरीर, पापसँ लक्ष्‍मी घटे कह गये दास कवीर। तँए हमरा लगमे गहूमक बीआ ऐछ परूकेँ साल उन्नत कि‍समक बीआसँ खेती केने छलौं। एक साल तकमे बीआ नै ने खराब होइत छै। तँए जे बीआक जरूरत हेतह से हम दऽ देबह। जँ अपना लग नै टाका हूअए तँ हम कहबऽ जे उन्नत कि‍समक बीआसँ खेती करह। खेतमे जँ हाल नै होइ तँ पटा कऽ खेती करि‍हह। नै‍ तँ धानोक खेती मारल गेल आ गहूमोक चलि‍ जेतह। एकटा बात कहह जे तरकारी-फरकारीओ सबहक खेती केने छह कि‍ नै?

हँ, हौ भाय तरकारीमे आल्‍लू, मुरै आ फरकारीमे कोबी, भाटा, टमाटरो सबहक खेती केने छी।‍

जोगि‍न्‍दर- से तँ नीक बात छ, नै तँ ऐ‍ बेरूका सन खराब समएमे लोक बौआइऐ कऽ ने मरैत। कि‍सानक तँ यएह सभ ने पूजी होइत छैक। समए-साल, आगाँ-पाछाँ देखि‍ कऽ खेती-बारी करक चाही। जइसँ कखनो मुँह मलीन नै हएत। तँए जे कहबि‍ओ छैक मन हरखि‍त तँ गाबी गीत।‍

 

कलियुगक निर्णए


सतयुग-त्रेता बीत गेल छल। द्वापरक समए पुरा भऽ गेल छलैक। कलियुगक प्रवेश हुअए बला छलैक। कलि‍युग अपन राज-पाट चलैबा लेल सोचि‍ रहल छल। बि‍चेमे तीनू युगक देवता सभ कलयुग लग आबि‍ हाथ जोड़ि‍ ठाढ़ भऽ गेला आ कलि‍युगो हाथ जोड़ि‍ ठाढ़ भेल। जखन वि‍चार-वि‍मर्श शुरू भेलै तँ तीनु युगक देवता सभ कहलखि‍न- “हम सभ तँ कहुना तीन युगक राज-पाट चलेलौं आब अहाँक पारी अछि‍ तेँ चि‍न्तालमे छी जे अहाँ कोना कऽ राज-पाट चलाएव। कि‍एक तँ हमसभ देवासुर संग्राम, वृतासुर संग्राम कोन-कोन ने केलौं। स्व र्ग-नरकक फेरा सभ केलौं। मुदा लोक सभ आर उडण्डँ होइते गेल। अहि‍ लेल अहाँ लग एलौं। अपने कोना चलाएव।‍”

  कलि‍युग बजलाह- “हे देवगण, हम अहाँ सभ जकाँ फाइल नहि‍ राखब मुन्सीँ पेसकार नहि‍ राखब हम फैसला तुरंते हेतै। जे जेहन काज करता तकर भोग हुनका तुरंते भेटतै।‍ अगुआएल-पछुअाएल जनमक फेरा नहि‍ राखब। स्वनर्ग-नरकक फेरा नहि‍ रहए देबै।”

  तीनू युगक देवता कलि‍युगक वि‍चार सुनि‍ गुम्मग भऽ गेला। फेर कलि‍युग बजलाह- “हम कृष्ण क कि‍छु अंश लए कऽ चलब आ लोक सभकेँ कहबै जे ‘कर्म कि‍ए का फल की इच्छाम मत करना इंसान, जेसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान।‍”

  ई सुनि‍ तीनू युगक देवता अपन-अपन लोक वि‍दा भऽ गेलाह।

गाम- बेरमा

भाया- तमुरि‍या

जि‍ला- मधुबनी

(बि‍हार)

 

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