Thursday, April 5, 2012

रामलोचन ठाकुरक दूटा विहनि कथा

गिरगिट

बैशाखक ठहाठही दुपहरियामे अपन आ अपन गर्भवती स्त्रीक आहारक जोगार कए जखन श्रीमान गिरगिट अपन डेरा घुरलाह तँ देखैत छथि जे पत्नी घोघना लटकओने बैसल छथिन। बेर-बेर एकर कारण पुछला उत्तर पत्नीक मओन भंग नहि भेलनि तँ ओ खिसिया कऽ बजलाह- एहिना घोघना फुलओने रहब तँ लोक कि अगरजानी जनैए जे अहाँक मनक बात बूझि लेत। पत्नी ओहिना विधुआएल भनभनेलीह- लोक बुझिए कऽ की करत? जँ सरिपहुँ लोककेँ हमर कचोटक चिन्ता छै तँ सत्त करओ। 
-एक सत्त, दोसर सत्त, तेसर सत्त, अहाँक कहल जे नहि करए से असी कुंड नर्कमे पड़ए। आबो तँ बाजब? गिरगिट आत्मसमर्पण कऽ देलनि। 
पत्नी खखास करैत बजलथिन- चलू हमरा लोकनि अइखन एइ देशसँ चलि चली। 
गिरगिट छगुन्तामे पड़ि गेलाह। “आखिर कून एहन बात भेलैक जे हमरा लोकनिकेँ अपन जन्मभूमि छोड़ि चलि जेबाक चाही?”
पत्नीक पारा गर्म भऽ गेलनि। “कनियो जे ज्ञानक छूति रहैत तँ ई पूछए नहि पड़ैत। आखिर कुनू जाति जन्तुक अपन परिचय रहैत छैक, विशेषता रहैत छैक। जँ सैह ने बचतै तँ लोककेँ लाजे मरि नहि जा हेतैक? 
-अहाँक कहबाक अर्थ हमरा नहि बुझैमे आएल। हमरा लोकनि अपन रंग बदलाक लेल विख्यात छी। परिवेशक अनुसार रंग बदलबाक पटुता हमरा लोकनिमे जन्मजात होइए... 
-मुदा ताहूमे हम सभ पाछू पड़ि गेलहुँ...पत्नी बीचेसँ लोकि लेलथिन। 
-अहाँ कि नेता लोकनिक बात कऽ रहल छी?- गिरगिटक प्रश्न भेल। 
-तँ आर ककर? आइ-कालिक नेता लोकनिक बराबरी करबाक दक्षता कि हमरा लोकनिमे रहि गेलए? गिरगिटकेँ बड़ जोरसँ हँसी लागि गेलनि। ओ ठहाका दैत बजलाह- तेँ ने कहैत छैक स्त्रीगणक बुद्धि। हमरा लोकनिकेँ तँ एहिमे प्रसन्नता हेबाक चाही। कहबीयो छैक जे दस टके नहि नितराइ, दस समाङे नितराइ।

भारत रत्न 

शासय्यापर पड़ल-पड़ल भीष्म पितामह सोचि रहल छलाह जे अन्यायी कौरवक संग दय ओ नीक नहि केलनि। आगामी इतिहास हुनका कहियो क्षमा नहि करत। अन्तमे ओ फेर हथियार उठेबाक आ पाण्डव दिससँ लड़बाक घोषणा केलनि। ई गप्प जखन दुर्योधनक कान तक गेलै तँ पहिने तँ ओ घबड़ाएल किन्तु पश्चात् शकुनीक संग परामर्श कए दोसर दिन हस्तिनापुरमे विराट सभाक आयोजन केलक। एहि सभामे ओ भीष्म पितामहकेँ एगो पैघ प्रशस्तिक संग “भारत रत्न”क उपाधिसँ अलंकृत केलक। कहल जाइछ जे तकर बाद जे भीष्म पितामह मओन व्रत धारण केलनि से जा जीलाह मुँह नहि खोललनि।

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