Friday, April 6, 2012

देवशंकर नवीन- विहनि कथा लेखनमे अवरोधक तत्व




विहनि कथा साहित्य-पदार्थक एहन परमाणु अछि, जाहिमे ओकर सभटा भौतिक आ रासायनिक गुण उपस्थित रहैत छै, आ परमाण्विक स्थितिमे ओकर रासायनिक प्रभाव तीक्ष्णतर भऽ जाइत छै। विहनि कथा जादूक एहन औँठी अछि जे पाठकक मानस-पटलसँ टक्कर लैत देरी ओकर निश्चेष्ट मानसिकताकेँ क्रियाशील कऽ दैत अछि, भोथर सम्वेदनाकेँ सक्रिय बना दैत अछि। विहनि कथा चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, कथानक सन पूर्णाहारक बदलामे विटामिनक गोली अछि, जे सम्पूर्ण ऊर्जासँ युक्त होइत अछि। 
वास्तविकतामे शब्द स्वयं महत्वपूर्ण नै होइत अछि, महत्वपूर्ण अछि ओकर प्रयोग-प्रक्रिया। प्रयोगक आधारपर शब्द अपन अर्थ-ग्रहण करैत अछि। विहनि कथा मूल रूपसँ व्यंग्य ध्वनित करैत अछि। अस्तु एकर वाक्यमे शब्दक प्रतीकात्मक प्रयोग विशिष्ट अस्मिता रखैत अछि। एहि अर्थमे एहिमे शब्द-विधान अहम् भऽ जाइत अछि, मुदा तकर कोनो मानक सीमा नै छै। रचनाकारक शब्द-विधाने एकर मानक सीमा अछि। ताहि द्वारे हम कहि सकै छी जे विहनि कथा, कथाक अपेक्षा कवितासँ बेसी लग अछि। आकारमे लघु भेलाक बादो एकर व्यंजना विराट होइत अछि। 
गानल-गूथल शब्दमे जीवनक सभटा विद्रूपताक एहन प्रस्तुति विहनि कथा अछि जकर रंग शीसापर सेहो जमल बिना नै रहि सकैत अछि। व्याकरण जौँ भाषा आ साहित्यक आचार-संहिता अछि, तँ विहनि कथाक आचार-संहिता खाली ‘शब्द’ अछि। शब्दक सहयोगसँ रचल जीवनक विद्रूपताक प्रतीक चित्र, सएह विहनि कथा अछि। 
विहनि कथामे मूल रूपसँ ‘कथ्य’ आ ‘शब्द’ क बड़ महत्ता होइत अछि। एकर संहितामे भाषा-विधान लेल कोनो विशेष स्थान सुरक्षित नै छै।    
शास्त्र-पुराणादिमे एकर उत्स स्पष्ट देखाइत अछि मुदा तकर बादो विहनि कथाक वर्तमान तेवर, विशुद्ध रूपसँ आधुनिक सभ्यता-संस्कृति आ बदलैत साहित्यिक प्रतिमानक प्रतिफल अछि। ओना तँ स्रोत ताकी तँ विष्णु शर्मा विरचित पंचतन्त्र वा फेर गुणाढ्यक बड्डकहा आकि आर पाछू जाइ तँ वेदमे वर्णित उपदेशपरक उपकथामे एकर सूत्र बड्ड सरलतासँ भेटैत अछि। काव्य-विषयक प्राचीनतम विधानमे एकरा लेल अलगसँ कोनो स्थान नै राखल गेल छल। ताहि कारणसँ ओहि सभ पारम्पारिक काव्य निकषपर एकर परीक्षण नै भऽ सकैत अछि, एकरा लेल नव समीक्षा शास्त्रक निर्माण अपेक्षित अछि।
विहनि कथा-लेखन एकटा खतरनाक वृत्ति अछि। ‘सतर्कता गेल आ दुर्घटना भेल’ क फार्मूला एहिपर पूर्णतः लागू होइत अछि। दुर्घटना माने असफलता आकि उत्थरपना। एकर बाद संयोजनमे सेहो पर्याप्त कलात्मकताक आवश्यकता होइत अछि। एहि कलात्मकताक कमजोरीसँ एकर प्रभावोत्पादकता चल जाइत अछि आ फेर विहनि कथा अपन मूल उद्देश्यसँ भटकि जाइत अछि। 
विहनि कथा-लेखनकेँ बहुत रास लोक द्वारा सिनेमामे आओल फैशनक रूपमे अपनाओल गेल अछि। औकाति होअए वा नै, जे ई युगक फैशन भऽ गेल अछि से लोक हास्य-कणिका लिखि कऽ सेहो ओकरा विहनि कथा कहि दै छथि। आ से एहि अत्याधुनिक मुदा खतरनापूर्ण विधा लेल बड्ड मोश्किलक गप अछि। एकरासँ बचबाक बड्ड जरूरति अछि। लिखबाक कला नै होअए तँ ई काज नै करबाक चाही। नकलची लेखकसँ विहनि कथाकेँ भयंकर नोकसान ई भेल जे ढेर रास लोक आइ हास्य-कणिका आ लुघकथामे अन्तर नै कऽ पबैत छथि। एत्ते धरि जे बहुत रास पाठक सेहो एहने सन मनःस्थिति बना लेने छथि, से विहनि कथाक स्वर किछु रूपमे भटकि-सन गेल अछि। तैयो बहुत-रास नीक-नीक विहनि कथा आबि रहल अछि। साओनक बेंग सन टर्रा कऽ बिलाइत लोकक संख्या कोनो विधामे कखनो कम नै रहल, से जौँ विहनि कथा-लेखनमे सेहो एहने भऽ रहल अछि तँ कोनो आश्चर्य नै। नीक विहनि कथाक पाठकीयता आ सम्प्रेषणीयता समएक संग गहींर होइत जाएत। 
साहित्यक कोनो अंशक मान्यता आ स्थापना ओकर ‘प्रकाशन’ आ ‘समीक्षा’ पर निर्भर अछि। विहनि कथाक प्रकाशन तँ क्रमसँ खूब भऽ रहल अछि, मुदा एहिपर आलोचनाक साहित्यक अत्यन्त अभाव अछि। ओना तँ किछु साहित्यिक ठेकेदार एहिपर आलोचनाक कऽ अत्याचार सेहो केने छथि। एहन आलोचना विहनि कथाक विस्तार लेल स्वास्थ्यकर नै अछि। 
मिला-जुला कऽ विहनि कथाक सम्भावना, स्वरूप आ विस्तारसँ आश्वस्त भेल जा सकैत अछि। ई विधा क्रमसँ जड़ि धेने जा रहल अछि। बेंग सभक आ शौकिया आलोचकक संग एकर उपेक्षा सेहो आस्ते-आस्ते मेटाइत जाएत। निश्चयेन एहिपर नीक-नीक आलोचना सेहो लिखल जाएत। विहनि कथा लेखन बीजगणितक हिसाब नै अछि जे हल कएल एकटा उदाहरण देखि कऽ दोसर सवाल बनि जाएत।

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