भगवान
सिद्ध पुरुष भऽ कबीर प्रख्यात भऽ गेल छलाह। दूर-दूरसँ जिज्ञासु
सभ आबि-आबि दर्शनो करैत आ उपदेशो सुनैत छल। मुदा कबीर अपन बेवसाय- कपड़ा बिनब नै छोड़लनि। कपड़ो बिनथि आ सत्संगो
करथि। एकटा जिज्ञासु कबीरक बेवसाय देखि पुछलकनि- “जाधरि अपने साधारण छलौं ताधरि कपड़ा बिनब उचित छल मुदा आब तँ
सिद्ध-पुरुष भऽ गेलिऐक तखन कपड़ा किअए बिनै छी?”
जिज्ञासुक विचार सुनि मुस्कुराइत कबीर उत्तर देलखिन-
“पहिने पेटक लेल कपड़ा बिनैत छलौं।
मुदा आब जन-समाजमे समाएल भगवानक देह झपैले आ अपन मनोयोगक साधनाक लेल बिनैत छी।”
एक्के काज रहितो दृष्टिकोणक भिन्नताक उत्पन्न होइबला
अंतरकेँ बुझलासँ जिज्ञासुक समाधान भऽ गेलनि।
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