Friday, April 6, 2012

थेथर मनुक्ख



दू दिनसँ परबा असगरे बैसल रहए । ओकर कनियाँ उढ़रि कए कतहु चलि गैलैक । बच्चा सभ कतेको बेर ओकर खोपड़ीमे पानि आ दाना दऽ आएल रहए। मुदा आइ भोरे ओ खोपड़ी उजारि कतहु चलि गेल”। 
“किए यै नानी । ओहो किएक नै दोसर बियाह कऽ लेलक । बेशी प्रेम करैत रहए कनियाँसँ”। 
“अहाँ नेना छी । ई कोनो थेथर मनुक्ख थोड़े छी जे कनियाँ मरए, माय-बाप मरए, बेटा-पुतोहु मरए, सर-समाज मरए, चारि दिन मुँह लटकाएत आ पाँचम दिनसँ फेर थेथर मऽ जएत “।

1 comment:

  1. वि‍चारणीय वि‍हनि‍ कथा

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