Friday, April 6, 2012

जातिवादी मराठी



“ऐँ यौ ई की देखैत छी, ऑफिसमे अफसर सेहो मिथिलाक आ बिहारक
आ रिक्शाबला, खेनाइ बनबए बला सेहो सभ मिथिलाक आ बिहारक । से कोन गप भेल”।
पुणे मे सिंहजी केँ एक गोट मराठी सज्जन पुछलखिन्ह।
बात सेहो ठीक रहए मुदा बाहरी लोककेँ बुझबामे नै आबए ।
सिंह साहेब भारतीय पुलिस सेवा मे रहथि आ हुनकर सहोदर भिखना-पहाड़ीमे प्रिंटिंग प्रेसमे क-ट सभ जोड़ैत छलाह, से हुनका कनेको अनसोहाँत नै लागलन्हि। मैथिली साहित्यमे देखैत आएल छथि मात्र मैथिल ब्राहाण आ कर्ण कायस्थक लेखनीकेँ चमकैत।
रिक्शाबला तँ दरभंगाक होए आकि कटिहारक,
खेनाइ बनबएबला झौआ रहबे टा ने करैत अछि।
ई मराठी सभकेँ पता नै किएक अनसोहाँत लगैत छैक।
बड्ड जातिवादी सभ अछि ई मराठी सभ।

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