Wednesday, April 4, 2012

भारत भुषण झा विहनि कथा




प्रेम

कदम गाछक छाहैरमे हम, ललन जी नरेन्द्र  आ एक दू गोटे आओर वैसल गर्मीसँ परेशान भऽ आरामक अनुभूति‍ करैत एक दोसरापर गप्परक नहलापर दहला मारैत आनन्दैक अनुभव करैत रही तखने ओतए एकटा कुकुर आएल। ओकरा देखि‍ हमर मन चि‍न्तिह‍त होमए लगल कारन जे ओतए वैसल बकरी आ ओकर बच्चाएकेँ कहीं ओ काटि‍ ने लै। कुकुर धीरे-धीरे बकरी बच्चामक लग जा ओकरा संग खेलऽ लागल जेना एक दोसराक जि‍गरी हुअए। एतवीमे ललन जी हमरा मुँह दि‍स देखि‍ बजला- “औ जी अहाँ कोन दुनि‍याँमे छी‍ हमरा सभ तखैनसँ अहाँपर कते गप्पम कऽ रहल छी आ अहाँकेँ ते कोनो ध्याकने नहि‍।”
  हुनक गप्पा सुनि‍ कहलि‍एनि‍- “यौ जी अपन सबहक गप्पन तँ होइते रहत एतय देखि‍यो कुकुर आ बकरीक प्रेम।‍ हमरा अहाँ सँ तँ नि‍क यएह सभ, जकरामे कोनो भेद-भाव नहि‍ छैक। दुनू दू जाति‍क आ प्रेम अपनोसँ वेसी।” वास्त वमे जि‍नगी तँ एहने हेबक चाही जहि‍मे कोनो भेद-भाव नहि‍ रहए।


(साभार विदेह विहनि कथा अंक www.videha.co.in )

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