Thursday, April 5, 2012

जगदीश प्रसाद मण्‍डलक वि‍हनि‍ कथा- ''आने जकाँ''


हलसल-फुलसल पत्नी बजलीह- आइ धरि‍ अहाँ कहि‍यो मोनसँ नै चाहलौं। सभ दि‍न बि‍गड़ले रहै छी?”
पत्नीक बात सुनि‍ छूब्‍ध भऽ गेलौं जे एहेन बात कअए कहलनि‍!
ि‍नच्‍चाँ-ऊपर देखि‍ कहलि‍यनि‍- अहाँ कत्ते चाहै छी?”
कहलनि‍- जहि‍ना सभकेँ देखै छि‍ऐ।
कहलि‍यनि‍- आने जकाँ हमहूँ भऽ जाइ तखन ने?”



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