Wednesday, April 4, 2012

राम प्रवेश मंडलक विहनि कथा- बुरबक



बुरबक

रेलगाड़ीसँ दि‍ल्ली‍क यात्रा करैत रही। संध्यारक सात बजैत छल। स्टे शनपर गाड़ी ठाढ़ भेल। एकटा युवक आबि‍ हमरा सबहक बीच बैठला। हमरा हुनका देखतहि‍ शंका भऽ गेल। ओ अपन झोरासँ वि‍भि‍न्न प्रकारक पोथी नि‍कालि‍ सबहक दि‍स बढ़ौबैत बाजल- “पढ़े जाउ नीक पोथी अछि‍।‍”
  कि‍छु खानक बाद झोरासँ देवी मैयाक प्रसाद नि‍कालैत बाजल- “चारि‍ चकाक ड्राइवरी लाइसेंस नि‍कलल। मनोकामना पूर्ण भेल। ओहि‍ लेल प्रसाद चढ़ेलहुँ। अहुँ सभ लि‍अ।‍”
  सभ केओ प्रसाद लेलक मुदा हम नहि‍ लेलहुँ। तखन सबहक सोझामे नीकसँ बुरबक बनलहुँ। गाड़ी चलैत रहल। राति‍ होएवाक कारणें बुरबक बनलहुँ। गाड़ी चलैत रहल। राति‍ होएवाक नि‍ंदि‍यादेवी अपन मायाकेँ पसारलक। सभ केयो सुति‍ रहला।
     कि‍छु लोककेँ नीन खुजलाक वाद हल्ला। भेलैक- हमर समान नहि‍ अछि‍। हमरो समान नहि‍ अछि‍। प्रसाद वॉटैबला युवक बीचसँ पहि‍ले नि‍कलि‍ गेल रहए। प्रसादमे नशा देल रहैक। सभ कि‍यो उदास भऽ गेल। हम पुछलहुँ- “‍आव कहु हम बुरवक कि‍ अहाँ सभ बुरबक?‍”


(साभार विदेह विहनि कथा अंक www.videha.co.in )

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