Thursday, April 5, 2012

विहनि कथा- राम-कथाक समापन



पूर्णिया जि‍लाक एकटा गाम-कन्हिरि‍या। गाममे वकील, शि‍क्षकप्रोजेक्ट प्रोफेसर आ प्रबुद्ध कि‍सान। गामक पूवारि‍ दि‍स बान्हा आ बान्हजक कि‍नछरि‍मे महानंदा नदी। कोठा-सोफा नीक-नि‍कुत घर। बड़का-बड़का बखारी आ दुआरि‍पर गाए-माल-जाल। गाममे मोटर-साइकि‍ल, ट्रेकटर। जि‍लाक प्रसि‍द्ध गाम।
     गाममे आयोजन भेल- राम-कथाक। भखरी, कन्ह,रि‍या अबथि‍ आ कथासँ लाभ उठा वि‍दा होएत। औरतक संख्याय बेसी। गामक कटुम-पाहुनक पदार्पणसँ गाममे उत्सकवी माहौल भऽ गेल। हमरो नौत छल। हमहुँ कथासँ लाभ उठा रहल छी। प्रवचन कर्त्ता गेरूआ वस्त्रु धारण केने, कन्हाापर गेरूआ गमछा, वसणीमे मधुरता आ राम-कथाक वाचन। हमरो नीक लागए। नीक-नि‍कुत दुनू साँझ भोजन आ कथाक लाभ। सात दि‍नक आयोजन समि‍ति‍। सभ दि‍न गुलाब बागसँ फल-फलहरी आवए प्रवचन कर्त्ता महाराज सदासुख रामलाल जीकेँ भोजन होइक। भोरखन युवकमे होर आबि‍ गेल- अाइ महाराजकेँ सेवाकेँ करत। धूमनक आहूति‍सँ गाम मह-मह करए। वूझि‍ पड़ए जे इलाकामे रामराज स्था पि‍त भऽ गेल। गाम बाजए- “सतयुग आबि‍ गेल।‍”
     हमर मोन साँझक पहरि‍ अकछा गेल। चोरा कऽ गामक दोकानपर एकटा सि‍गरेट-सलाइ लेलहुँ आ बाध दि‍स वि‍दा भेलहुँ। खेतक बीचसँ बैलगाड़ीक लीक। चारूकात धान आ ऊँचगर खेतमे भाटा। समए अन्हइरा रहल अछि‍। सूर्य अस्तालचल ि‍दस नुका गेल छथि‍। चि‍ड़ै-चुनमुन्नी अपन-अपन खोंता दि‍स वि‍दा भऽ गेल अछि‍। काल्हि‍ सातम दि‍न अछि‍- अहि‍ना शांति‍ पसरि‍ जाएत अौर लाैस्पीसकर अवाज सेहो बन्न भऽ जाएत। जेवीसँ सि‍गरेट-सलाइ बहार कऽ सि‍गरेट सुनगबैत नदी दि‍स वि‍दा होइत छी। कने-कालक पछाति‍ सुनै छी-
     ‘हक्का-बक्का, हक्का बक्का
     बगि‍या खा हौ कक्का
     आउरो खेतोमे आऊर-बाऊर, आऊर-बाऊर
     हमरा खेतमे छुछै चाउर-छुछै चाउर
     हक्का-बक्का, हक्का-बक्का
     बगि‍या खा हौ कक्का’
  खेत दि‍स देखैत छी- थारीमे बगि‍या आ अगरवत्ती नेने क्योे कक्काकेँ पूजि‍ रहल अछि‍। हमर सि‍गरेट समाप्त  भऽ रहल अछि‍ आ हमरा बुझना जाइत अछि‍ जे राम-कथाक समापन भऽ गेल अछि‍।


(साभार विदेह विहनि कथा अंक www.videha.co.in )

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