Wednesday, April 11, 2012

शिनीची सि‍नेह :: जगदीश मण्‍डल


शिनीची सि‍नेह

तीन दिनसँ चूल्हि नै पजरने, दुनू परानी सियान तँ बरदास केने रहथि मुदा बच्चा सभ भूखे ओसारपर ओंघरनियो दैत आ हिचुकि-हिचुकि कनबो करैत। अनेको प्रयास सियान केलक मुदा खेनाइक कोनो गर नै लगलै। अंतमे निराश भ सियान अपन जिनगीकेँ बेकार बूझि, आत्महत्या करैक विचार मनमे ठानि लेलक। आत्महत्या करैले विदा भेल। निराश मन दुखक अथाह सागरमे डुमए लगलै आकि पाछूसँ एक आदमी कान्हपर हाथ दऽ कहलकै- मित्र, ऐ अमूल्य जिनगीकेँ गमौलासँ की हएत? हम मानै छी जे अहाँक विपत्ति अहाँकेँ आत्महत्या करैले बेबस कऽ देलक। मुदा की अहाँ ऐ विपत्तिकेँ हँसैत-हँसैत पाछू नै धकेल सकै छी?”
आत्मीयताक शब्द सुनि सियान बोम फाँड़ि कनए लगल। कनबो करैत आ अपन सभ मजबूरी ओइ आदमीकेँ कहबो करैत। मजबूरी सुनि शिनीचियोकेँ आँॅखिमे नोर आबि गेलै। तत्काल ओ सियानकेँ भोजनक जोगार करए लेल किछु रूपैया दऽ देलखिन। सियान घुमि‍ कऽ घर आबि भोजनक बेवस्था केलक।
वएह शिनीची जापानक प्रसिद्ध कवि छथि। अहीठाम ओ संकल्प केलनि जे अप्पन कमाइक तीन-चैथाइ भाग ओहन व्यक्तिक सेवामे लगाएब जे कष्टमय जिनगीमे पड़ल अछि।
घरपर आबि शिनीची एकटा गुप्तदानक पेटी बना मुख्य चौराहापर रखि देलनि‍। ओइ पेटीक ऊपरमे लि‍ख देलखिन- जइ सज्जनकेँ सचमुच पाइक खगता होन्‍हि‍ ओ ऐ पेटीसँ अपना काज जोकर निकालि लथि
सभ दिन साँझकेँ शिनीची आबि पेटी खोलि देखि‍ लथि। जँ पेटी खाली रहैत तँ दऽ देथि।

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