शिनीची सिनेह
तीन दिनसँ चूल्हि नै पजरने, दुनू परानी सियान तँ बरदास केने रहथि मुदा बच्चा सभ भूखे ओसारपर ओंघरनियो दैत आ हिचुकि-हिचुकि कनबो करैत। अनेको प्रयास सियान केलक मुदा खेनाइक कोनो गर नै लगलै। अंतमे निराश भऽ सियान अपन जिनगीकेँ बेकार बूझि, आत्महत्या करैक विचार मनमे ठानि लेलक। आत्महत्या करैले विदा भेल। निराश मन दुखक अथाह सागरमे डुमए लगलै आकि पाछूसँ एक आदमी कान्हपर हाथ दऽ कहलकै- “मित्र, ऐ अमूल्य जिनगीकेँ गमौलासँ की हएत? हम मानै छी जे अहाँक विपत्ति अहाँकेँ आत्महत्या करैले बेबस कऽ देलक। मुदा की अहाँ ऐ विपत्तिकेँ हँसैत-हँसैत पाछू नै धकेल सकै छी?”
आत्मीयताक शब्द सुनि सियान बोम फाँड़ि कनए लगल। कनबो करैत आ अपन सभ मजबूरी ओइ आदमीकेँ कहबो करैत। मजबूरी सुनि शिनीचियोकेँ आँॅखिमे नोर आबि गेलै। तत्काल ओ सियानकेँ भोजनक जोगार करए लेल किछु रूपैया दऽ देलखिन। सियान घुमि कऽ घर आबि भोजनक बेवस्था केलक।
वएह शिनीची जापानक प्रसिद्ध कवि छथि। अहीठाम ओ संकल्प केलनि जे अप्पन कमाइक तीन-चैथाइ भाग ओहन व्यक्तिक सेवामे लगाएब जे कष्टमय जिनगीमे पड़ल अछि।
घरपर आबि शिनीची एकटा गुप्तदानक पेटी बना मुख्य चौराहापर रखि देलनि। ओइ पेटीक ऊपरमे लिख देलखिन- “जइ सज्जनकेँ सचमुच पाइक खगता होन्हि ओ ऐ पेटीसँ अपना काज जोकर निकालि लथि”
सभ दिन साँझकेँ शिनीची आबि पेटी खोलि देखि लथि। जँ पेटी खाली रहैत तँ दऽ देथि।
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