Wednesday, April 4, 2012

चारिटा विहनि कथा


दरेग
कारक पट्टा खुजिते चिल्काकेँ ओकर दादीमाँ आह्लादित होइत कोरामे लेलनि। अहा! देखियौ तँ कते फकसियारि काटि रहल अछि नेना। एगदमसँ लहालोट भऽ गेल अछि।
“ऐँ यै कनियाँ, बौआकेँ दूध लगा लेबै से नै? ”
-माँ, दुध कहाँ होइ छै, ओ तँ कहिया ने सुखा गेलै।
-तँ डॉक्टरसँ नै पुछलिऐ दुध हेबाक उपाए?
-ओ तँ बतौलक, मुदा...! जखन बजरुआ दुधसँ पलाइये जाएत तँ चिन्ता कोन?
-ऐँ यै, कतेक निसोख छी अहाँ, कहू तँ अप्पन दुध कोना छोड़ा देलिऐ?
-माँ, ई नै बुझथिन ने, दुध पियेलासँ फिगर खराब भऽ जाइत छै।
-हँ यै, हम अंग्रेजिया शब्द तँ ठीके नै बुझबै। मुदा एतेक जरूर बुझबामे अबैए जे दुध नै सुखेलैए। ओ तँ कोनो ने कोनो रूपेँ सभ ठाम भेटिये जाइ छै।...जँ सुखा गेलैए तँ माएक ममता।
भूख
सतबरतीक मोहर अपनापर लगेबाक लेल नै जानि कतेको साउस आ माएकेँ आरोपित कएलक। एतेक धरि जे कोनो कनियाँ-बहुरियाकेँ सेहो नै छोड़लक।
ओकरापर संदेह तँ भरि गौँआ करए मुदा ओकर छुटल मुँहक सोझाँ सभ अप्पन-अप्पन मुँह बन्न राखैमे बुधियारी बुझए।
असलमे ओकर घरबलाक सेनाक नोकरीसँ छुट्टीक अभाव आ ओकर सुन्नरता गामे भरि नै, अनगौंओं छओँड़ा सबहक आकर्षणक केन्द्र बनि गेल छल।
एक दिन गाम भरिक बुजुर्ग आ काबिल लोक सभ बैसारमे बजा ओकरा खुब ज्ञान देलक।
ओ निश्चय कएलक जे हम अइ नरकसँ मुक्ति हेतु अइ गामकेँ छोड़ि देब। मुदा अपन कर्कश शब्दवाण छोड़ैत गौँआ सभकेँ सुनौलक- एँ, ऐ गामक कोन घरक बेटी, पुतौह हाट-बजार आकि मेला जा कऽ नै घुमि अबैए। मुदा हम तँ आइ धरि अपन घरसँ दुरापर तक नै अबै छी। कहू तँ कियो पाहुन-परक वा भेंट केनिहार अबैए तँ कि ओकरा अपन घरसँ भगा दिऐ?
-यै, ककरो घर अएबासँ नै रोकबै, मुदा ओकरा संग अपन रंग-रभसकेँ तँ रोकि सकैत छी। मुखियैन दबले जीहे मुँह खोलने छलीह। फेर हँ, सबहक बेटी,पुतौह अपन साउस माएक संग कतौ जा घुमैए आ फेर घरमे इज्जतिक संग वास करैए। ककरो किछु नै भेलैए आइ धरि।
-अहाँ तँ घरे भरिमे रहि पेट कऽ लेलौं। छीः छी, नै जानि जे कोन जाति धर्मक बीआ बागल हएत। अहाँक घरबला पछिला साल दियाबातीक छुट्टीमे आएल छल आ फेर अगिला मास दियेबातीमे आओत। की अहाँ ओकरा सोगाइतमे देबाक लेल रखने छी ई अनजनुआ चिल्का।
-बुझा देथुन ने ईएह सभ। हम तँ तार पठा, फोन कऽ थाकि गेलौं जे नोकरी तँ बुढ़ारी धरि हेतै मुदा जुआनी फेर घुमि कऽ किन्नौ नै एतै। हम पेट तँ मेटा लेब मुदा जखन देहक भूख लगतै तँ ओ फेर छोड़ि चल जेतै नोकरीपर। हमरा के सम्हारत?
विजातीय
पुरे पहाड़ीपर शुन्यता पसरि गेल छल। ऊपर मेघमे स्याहपन, हवाक साँए-साँए स्वर्त, जोड़ीकेँ आओर मजेदार समएक अनुभूति करा रहल छल।
-यौ ठीके कहै छलिऐ, हम तँ एतेक दूर धरि कल्पनो नै करै छलौं जे पहाड़ आ जंगल जिनगीकेँ खुशनुमा बना सकैए।
-आह! कतेक मजेदार क्षण।
बिआह जिनगीकेँ नवदर्शन दैछ आ तकर पछातिक दिन-राति प्रकृतिक कोरामे जीवनक सम्पूर्णताक सुन्दर अनुभूति करा रहल अछि।
-यै, अहाँकेँ ई बुझल अछि जे चोरा कऽ कएल प्रेम बिआह आनन्दक पछाति स्वर्गक रस्ता सेहो खोलि छोड़ैए।
-हँ यौ, तँ किएक ने ऐ समाजक डांगसँ अपनाकेँ बचा, ऐ क्षणकेँ जीवनक अन्तिम क्षण बना ली। सोहाग तँ अचल रहत।
राष्ट्रभक्ति
सीमाक मानवीय कटु सम्बन्ध ओकरा आलोचनाक पात्र बना देने रहै। एकसर आ स्वतंत्र मुदा मस्त जीवन जीबामे प्रसन्न रहै छल।
बिआहक पछाति एक बेर फेर ओ सामाजिक आलोचनाक शिकार भऽ गेल। किएक तँ ऐ नव दम्पतिक घर खुजैत सभ नै देखि पबै।
आइ पतिक जेबाक छट्ठम मास बीति रहल छलै कि ओ सुन्दर पुत्रक जन्मसँ प्रसन्न भऽ पतिकेँ सूचनार्थ पत्र लिखैत मोनमे सोचि रहल छल- ऐ चिट्ठीकेँ डाकघर धरि पहुँचाओत के?
किएक तँ ओकर एकाकी जीवन पति मात्रपर केन्द्रित हेबाक कारणे सभ ओकरा समाजक सुन्दर कार्टुन मात्र बुझै।
“डाकिया...” शब्द सुनि ओ दुन्ना डेगे सोइरी घरसँ बहराएल।
डाकियाक पत्र देबाक लेल बढ़ल हाथ ठमकिते ओ बिजलीक करेन्टक गतिये पत्र लऽ फाड़लक-
“खेद अछि- अहाँक पतिक रणक्षेत्रमे शहीद भऽ गेलासँ हम सभ एकटा वीरपुत्र हेरा लेलौं अछि।”
बाप रे! करुण चित्कार...!घरबैया, सर-समाजक सांत्वनाक बीच मीडियाकर्मीक प्रश्न...प्रतिक्रिया जनबाक लेल।
पत्रकार सबहक प्रश्नक उतारा दैत-
“नै, भारत माँ अपन रक्षार्थ एकटा आओर सैनिक ठाढ़ कऽ लेलक अछि।”

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