Wednesday, April 4, 2012

मानेश्वर मनुजक पाँचटा विहनि कथा

रक्षा-बन्धन पर्वकेँ बितला तीन मास भऽ गेल छलैक। देवानजी एखनो राखीकेँ तावीज जकाँ बन्हले रखने छलथि।
हम पुछलियन्हि, “देवानजी, एतेक दिनक बादो ई हाथमे रखने छी। किएक?”
जावाब देवक बदला ओ हमरे पूछि देलन्हि, “ई की छैक।”
हम कहलियन्हि, “राखी।”
ओ कहलन्हि- “जखन एकर नामे छैक राखी तखन फेकी किएक। राखी मर्यादाक बन्धन अछि, तैँ राखी।”

स्त्री-लिंग
“हिन्दीक पचास प्रतिशत शब्द स्त्रीलिंग आ पचास प्रतिशत शब्द पुलिंग अछि।”
“नहि, पचास प्रतिशतसँ किछु बेसी पुलिंग होइत अछि।”
“नहि, उल्टे अहाँ बाजि गेलहुँ। पचाससँ किछु बेसी प्रतिशत शब्द स्त्रीलिंग होइत अछि।”
“जाइ शब्दक बारेमे नहि बुझल रहैत छैक से पिलिंग भऽ जाइत व्छैक, फेर पुलिंगक प्रतिशत बेसी किएक ने हेतैक।”
“आ जाहिमे सन्देह होबय ओकरा स्त्रीलिंग कहि दी, तँ स्त्रीलिंगक प्रतिशत बेसी किएक ने हेतैक।”
“स्त्रीलिंगपर लोक बेसी साकांक्ष रहैत अछि तैँ स्त्रीलिंगक प्रतिशत बेसी छैक आ होबहोक चाही।”

आप
रत्नेश्वर स्कूल जाइत छल कि चूड़ीबला रोकि पुछलकैक, “कैसे हो रत्नेश्वर “तुम”?
रत्नेश्वर ओकरा सम्बोधनपर खिसिया कऽ कहलकैक, “आप कहो”।
चूड़ीबला सवाल जानि उत्तर देलकैक- “मैं तो ठीक हूँ, तुम कहो”।
फेर रत्नेश्वर खिसियाइत बाजल, “तुम नहीं आप कहो, मैंने कहा न, तुमसे”।
“तो ठीक है”।
आ गुनधुन करैत ओ आगाँ बढ़ि गेल। ओकरा किछु समझि नहि अएलैक।

लोरी
रेल्वे-स्टेशनक बगलमे रेलक टुटल-फाटल क्वार्टर, झोपड़पट्टी सन रेल कॉलोनी।
खाटघरसँ आएल श्यामानन्द कहलन्हि, “झाजी, खाटघर बड़ सुन्दर जगह अछि। साँझ खन कऽ ओतऽ एहन लगैत छैक जेना स्वर्ग पृथ्वीपर उतरि गेल होइक।”
हम कहलियन्हि, “मुदा जाए आ आबक कतेक भारी समस्या छैक। एक तँ हार्वर लाइनक नहू चलऽवाली गाड़ी आ ताहिपर सँ दादरमे चेन्ज कऽ चर्चगेट जाएब।”
“दादरसँ चेन्ज किएक। नरीमन प्वाइन्ट जेबाक लेल सोझे छत्रपति शिवाजी चलि जाइत छी।” ओ कहलन्हि।
हम कहलियन्हि, “हमरा लेल तँ दहिसरक रेल क्वार्टरे सभसँ उत्तम।”
“मुदा रेलक पटरीसँ सटल रेलक क्वार्टर। आवाज कतेक अबैत छैक। सदिखन निन्द हराम रहैत छैक।”
हम कहलियन्हि, “नहि एहन बात नहि छैक। हमरा तँ रेलक आवाज संगीत लगैत अछि। जावत तक गाड़ी सभ चलैत रहैत अछि चैनक निन्द अबैत अछि। मुदा जखन कखनो गाड़ी रुकि जाइत अछि फटसँ निन्न टूटि जाइत अछि, जेना माँक लोरी बिच्चेमे बन्द भऽ गेल होए।”
ओ कहलन्हि, “अहाँ रेल-कर्मचारी तऽ ने छी? ”

भूख-भूख भाकुर

मड़ुआक महीना छलैक मुदा खेतमे मड़ुआ नहि। धानक महीना एलैक मुदा खेतमे धान नहि। आँसुक महीना गेलैक मुदा खेतमे आँसु नहि। न्योतक महीना छलैक मुदा कतौसँ न्योँत नहि। खएबाक समए छलैक मुदा घरमे अन्न नहि। खेलबाक महीना छलैक मुदा घरमे उमंग नहि।
ओ चितंग सुतल छल कि धरनिपर कतौ पाँच लिखल लगलैक। पाँच यानी पाँच फूल। पाँच यानी पाँच लोटा जल। पाँच यानी पाँच आँगुर।
मुदा ओकर भूख खीचि कऽ ओकरा पाँच राखीपर लऽ गेलैक।
ब्राह्मणक बेटा यानी पवित्र लोक। भोजनक समस्या मुदा स्वभाव सुन्दर। पढ़ाइमे कनियो आसकैत नहि। ब्रह्मचर्यक सभ गुणसँ परिपूर्ण मुदा पेटमे ज्वाला।
तुर नहि, ताग नहि। कतऽसँ आनत राखी। लड्डू बाबाक फाटल सीरकमे सँ कनेक तुर आ थोड़ ताग घिचलक आ बना लेलक राखी। राखी सन नहि लगैक मुदा राखिये छलैक। रंग नहि छलैक घरमे तँ फूल तोड़ि फूलक रंग ओहि तुर आ तागपर लगौलक। मुदा राखी बनलै सर्फ चारि। पाँच नहि पुरलैक।
राखी पुरान सन लगैक।  भेलैक राखी लेबऽ सँ केयो मना ने कऽ दिए। एहन कतौ राखी भेलैक अछि। एक राखी वैद्यजी केँ पहिराबऽ लागल तँ वैद्यजी कहलथिन्ह, “ पहिने श्रीकृष्णजीक मूर्तिमे बान्हि आऊ।”
श्रीकृष्णजीक लग जा थोड़ेक काल ठाढ़ भऽ वापस आबि गेल कारण राखी तँ छलैक सिर्फ चारि। श्रीकृष्णजी तीन दिनक भूखल पेटमे की अन्न देथिन।
वापस आबि रक्षाबन्धन रक्षाक हेतु एकटा राखी सुमनजीकेँ, एकटा मदनजी केँ, एकटा रमणकेँ आ एकटा बैद्यजी कँ बन्हलक। बदलामे किछु अनाज भेट गेलैक।
मोन उत्साहसँ भरि गेलैक। निराहारकेँ लगलैक जेना भूखक टाइपमे भाकुर आबि गेलैक। खेतमे फसिल नहि, घरमे अन्न नहि मुदा मोन उमंगसँ भरि गेलैक।

(साभार विदेह विहनि कथा अंक www.videha.co.in )

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