Thursday, April 5, 2012

लिली रे क विहनि कथा- वी.आइ.पी.

“वृक्ष संरक्षण पुरस्कार”लेल मनीकुमारक नाम लिखल गेलै तँ ककरो आपत्ति नै भेलै। एतेक देरीसँ मान्यता भेटलै, तकरे खेद छलै सभकेँ। मनीकुमारक माए वन विभागमे अस्थाइ कर्मी छलि। मनीकुमार नेन्नेसँ निराइ-रोपाइमे माएक हाथ बँटबैत छल- निःशुल्क। माए अनेक गाछ-लत्तीसँ ओकरा भाए बहिनक सम्बन्ध जोड़ि दै। नियम-कानून बदललै तँ माएकेँ स्थाइ नोकरी देबाक प्रस्ताव भेलै। माए नोकरी नै लेलकै। बदलामे अपन बेटाकेँ नोकरी देबाक सिफारिश केलकै। सिफारिश मंजूर भऽ गेलै।

काज नहियो रहै तँ माए जंगलमे आबि बेटाक हाथ बँटबै- निःशुल्क। बेटा अपन रोपल गाछ-लत्तीसँ पोता-पोतीक सम्बन्ध जोड़ि दै। लोककेँ बड़का अनमना होइ।
वार्षिक समारोहमे पुरस्कार भेटबाक छलै। प्रतिवर्ष ई समारोह खूब धूमधामसँ मनाओल जाइ। नृत्य-संगीत-नाटक, जलपानसँ समारोह सम्पन्न होइ। बाहरसँ विशिष्ट व्यक्तिलोकनि आबथि। गाछ-पात चित्रित निमन्त्रण-पत्र पाबिकऽ।

मनीकुमार इतः स्तुतः करैत साहेबक आफिसमे पहुँचल। नमस्कार कऽ विनम्र स्वरमे बाजल- “सर! एकटा कार्ड हमहूँ पठा सकैत छी? ”

“अहाँ तँ विभागक लोक छी। अहाँक पूरा परिवार आएत। खाएत-पीएत। अहाँकेँ तँ बुझले अछि। ”

“हुजूर! मुदा हम एकटा वी.आइ.पी. कार्ड चाहैत छी। ”

“ककरालए? ”

“एकटा किशोरकेँ वी.आइ.पी. कुर्सीपर बैसाकऽ देखबऽ चाहैत छी। नाम छिऐ- जीवन तामाङ्ग। गांधी स्कूलमे आठमी क्लासमे पढ़ैत अछि। ओकर बाप संतोष तामाङ्ग, पानदाङ्ग चाह-बगानमे काज करैत अछि। ”
“की नाम कहलुं? ”
“जीवन तामाङ्ग। क्लास एइट, गांधी स्कूल। ”
“निश्चय, कोनो खास कारण अछि? ”
“हुजूर! ई बच्चा आन्हर छल। पाँच कि छओ वर्षक छल जखन हमर माए मुइलि। माएक आँखि जीवनकेँ भेटलै।”

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