Wednesday, April 4, 2012

जगदीश प्रसाद मण्डलक चारिटा विहनि कथा

१) थल-कमल

जहि‍ना अगुरबार दरमाहा उठा परदेशी घरक काज सम्हाौरैक लेल पत्नीसकेँ पठबैत आ ओहि‍ रूपैयासँ, टावरक कि‍रदानीसँ अकछि‍ तेसर मोबाइल कीनए जाइत तहि‍ना झंझारपुरक हाटक चाउर-दालि‍क बजारमे ठकाइ देहरादून चाउरक दोकानक आगूमे ठाढ़ भऽ आँखि‍ गरौने। थालमे जनमल कमलक भौंरा सदृश्यक ठकाइक मनमे उठलै- ऽसात दि‍नसँ दुनू संझी नवका गहूमक रोटी खाइत एलौं, भूसीपर पाइ उठा चाउर कीनए एलौं, जे सस्तल हएत सहए ने कीनब।ऽ
मुदा लगले थल-कमलक बि‍ढ़नी जकाँ मन घुनघुनाएल- ऽचाउर तँ चाउरे छी, तहन नीक कि‍अए ने कीनब।ऽ
     ओझराएल मने ठकाइ सइओ रूपैआमे कि‍लो भरि‍ चाउर कीनि‍, गमछाक खूँटमे बान्हि ‍, तमाकू चुनबैत घरमुँहा भेल।
     बीघा भरि‍ बटाइ खेतक उपजासँ छह मासक बुतात नि‍कलि‍ जाएत। बैशाखक पूर्णिमाक दि‍न। गहूमक लरती-तरती आबि‍ गेल आ धान-चाउरक चलि‍ गेलै। बाड़ीक तरकारी नि‍ङहटि‍ गेल छलैक, लऽ दऽ कऽ पटुआक साग टा छलैक। सेहो रोटी दुआरे छोड़ि‍ये देने। पटुआ सागसँ नीक नोन-मेरि‍चाइ।
     हाट जाइये काल परसुका ढोलहो ठकाइकेँ मन पड़ल। मन पड़ि‍ते मुँहसँ हँसी नि‍कलल। मुदा हँसी रूकल नहि‍ मोकरक पानि‍ जकाँ बहि‍ते रहि‍ गेल। बाटो चलै आ असकरे हँसबो करै। तहि‍ बीच एकटा अधवयसू स्त्री गण माथपर छाउरक पथि‍या नेने देखलनि‍ तँ मने-मन घुनघुनेलीह- “पुरूख छी की पुरूखक नांगड़ि‍। केदैन हँसला कीदैन देखि‍।‍” मुदा कि‍छु बजलीह नहि‍।
ठकाइक खुशीक कारण छलैक जे ढोलहो दऽ सोरहा केलक जे ईंटा-सि‍मटीक घर, पानि‍ पीबैले कल, खाइक उपाए एक सए पच्ची स रूपैयाक प्रति‍दि‍न काज, रोग-व्या‍धि‍क लेल खरतुआ दवाइ सभकेँ भेटत। जखन सब चीजक उपाए भइये गेल तखन कि‍अए लोक अनेरे मनकेँ भरयौने रहत। तेँ मन खुशी। दरदे ने ककरो माथ टनकै छै जौं दर्द रहबे ने करतै तँ माथ किअए टनकतै।
     गामक सीमान टपि‍ते ठकाइक मनमे उठल। देवि‍यो-देवता हारि‍ मानतीह। बड़ दइ छेलखि‍न ते एक दि‍आरी साँझमे समांग, वि‍द्या, धन दइ छेलखि‍न। ईंटा-सि‍मटीक घर, पानि‍ पीबैक कल आकि‍ सवा सौक बोइन तँ नहि‍ दइ छेलखि‍न।
     कि‍लो भरि‍ चाउरक मोटरी देखि‍ आंगन बाहरैत बि‍लटी बाढ़ब छोड़ि‍, हाथमे बाढ़नि‍ नेनहि‍ तरंगि‍ कऽ पति‍केँ पुछल- “हाटमे चाउर नइ छलै जे छुछे हाथे घुमि‍ गेलहुँ?‍”
  मुस्कीँ दैत ठकाइ बाजल- “आँखि‍मे रतौनी भेलि‍ अछि‍ जे चाउरक माटरी नइ देखै छीऐ।‍”
     आँत मसोसि‍ बि‍लटी मने-मन सोचए लागलि‍ जे जेहने पटुआ साग गलनमा होइए तेहने अरबा चाउर। तहूमे मोटका चाउर पाँच दि‍न चलबो करैत, ई तँ एक्को दि‍न नइ चलत।
२) घरडीह

आध पहर राति‍येसँ, जहि‍ना हथि‍या आ आन नक्षत्रक सतैहि‍या लधल रहैत तहि‍ना मास दि‍नसँ सासु-पुतोहूक बीच झगड़ा लधल आबि‍ रहल अछि‍। ने बाप उधो कि‍छु बजैत आ ने बेटा फोकचा। फाँक चगह पाबि‍ दुनू -सासु आ पुतोहू- भरि‍ मन उखला-उखली करैत। डेढ़ि‍यापर बैसल उधो सोचैत जे जहि‍ना पत्नीद तहि‍ना पुतोहू। धधकल आगि‍मे आड़ि‍ कना देव तेँ चुप। तहि‍ना फोकचोक मनमे उठैत तेँ ओहो चुपचाप ओसारपर बैसल तमाकु चुना मुँहमे देने रहए।
     दस सालसँ दुनूक -सासु-पुतोहूक- मधुर संबंध रहने कहि‍यो हर-हर-खटखट परि‍वारमे नहि‍ भेल। अनायास हवा बदलि‍ गेल। पाँच गोटेक परि‍वारमे- बाप-माए, बेटा-पुतोहू आ एकटा पोता। संबंध ि‍बगड़ैक कारण भेलैक इन्दिा‍रा आवास।
जेहने टाँस बोली नवानीवाली सासुक तेहने रहुआवाली पुतोहूक। सौंसे गामक लोक सुनैत।
अपना घरक मुँहथरि‍पर ठाढ़ भेल मेहथवाली कबि‍‍लपुरवालीकेँ कहलकनि‍- “पेट बोनि‍या लोककेँ सदि‍काल कि‍छु ने कि‍छु खगले रहै छै। तेँ....।‍”
  मुँह बि‍जकबैत कबीलपुरवाली बजलीह- “गामक लेखे ओझा बताह आ ओझा लेखे गाम।‍”
     कलपर नवानीवाली रहुआवालीकेँ देखि‍ चि‍कारी देलखि‍न- “भगवान पुतोहूओ देलखि‍न ते दीदीकेँ।‍”
  आँखि‍ उनटबैत रहुआवाली- “अहि‍ना नि‍मूधनकेँ लोक दुसै छै क्योभ अपन घेघ देखाए तब ने।‍”
     डेढ़ि‍यापर बैसल उधोक हृदय कुही होइत। कखनो मुँहसँ हँसी नि‍कलैत तँ लगलै बि‍धुआ जाइत। मनमे उठलै- घरारीक कागज-पत्तर तँ अछि‍ये नहि‍ आ ईंटा-सि‍मटीक घरले झगड़ा।

३) खाता-खेसरा

ओना इन्दिँ‍रा आवासक अंतर्गत दू-चारि‍ घर कतेक सालसँ बनैत अबै छै। मुदा एहि‍साल हवा उड़ि‍आएल जे सभकेँ बनतै। चरि‍-चरि‍ रूपैये फार्मक बक्री ततै भेल जे प्रेसबला सभ तेहरा-तेहरा छपलक। गामसेवककेँ सभ फार्म भरा-भरा ब्लौचक पहुँच गेल। हाथमे अपन-अपन फार्म नेने अगनैत परतीमे पति‍आनी लगा ठाढ़ भऽ गेल। नम्बभर अबि‍ते घुसका फार्म बढ़ौलक। फार्म देखि‍ बी‍डीयो बाजल- “खाता-खेसरा?‍”
  चुपचाप घुसका आगूमे ठाढ़। बगलमे फार्म रखि‍ बीडीयो फेर बाजल- “पति‍आनीसँ कात जाउ?‍”
  घुसका- “सबहक फारमपर लि‍खि‍ देलि‍ऐ आ हमर रखि‍ देलि‍ऐ?‍”
  बीडीओ- “बि‍ना खेसरा नम्बिर चढ़ौने पास नहि‍ हएत।‍”
  घुसका- “पहि‍ने खेसरेक ओरि‍यान कि‍एक ने केलि‍ऐ?‍”

४) सबूत

तीन दि‍नसँ गामक रोहनि‍ये बदलि‍ गेल। जहि‍ना रोहनि‍मे आमक चि‍ष्टा -चार, रंग-रूप, बसंत पाबि‍ मनुष्यँक तहि‍ना दस पहि‍या ट्रकपर तीनि‍-तीनि‍ आदमीक बोझ, ट्रेक्टचरपर झुलैत कुर्सीक बावू कैल, चरक, सि‍लेव, गोल, गहुमन, चि‍तकाबरसँ भरि‍ गेल। गौआँ चौक छोड़ि‍ गाम पकड़ि‍ लेलक आ आनगौआँ आबि‍ चौक पकड़ि‍ लेलक। मुदा जे हउ, चाहक दोकानक ब्रेंच कखनो खाली नहि‍ रहल।
     साढ़े छह बजैत-बजैत सभ हाटक दोकान जकाँ ठौर पकड़ि‍ लेलक। कि‍यो नव परि‍धानमे सजि‍ तँ कि‍यो सर्फमे साफ कएल वस्त्रबसँ सजि‍ भोंटक बुथपर नम्बिरमे ठाढ़ भऽ गेल। भुटकुमरा सेहो पति‍आनीमे ठाढ़ भेल। जेना-जेना आगूक इंजि‍न खि‍चै तेना-तेना अपन अधि‍कार देखि‍ भुटकुमराक पेटमे गुदगुदी लगैत। जहि‍सँ मन तर-ऊपर करैत। ससरैत-ससरैत अगि‍ला मुहरापर पहुँच पुरजी बढ़ौलक। पुरजी लैत प्रजाइडि‍ंग अफसर बाजल- “फोटो पहचान पत्र?‍”
  कि‍छु नहि‍ बाजि‍ भुटकुमरा खुशीसँ मुँह नहि‍ खोलि‍ वेबसीक दाँत ि‍चआरि‍ देलक। जेना फोटो खि‍चबै लए सावधान भऽ गेल हुअए।
  दोहरबैत प्रजाइडि‍ंग अफसर बाजल- “ड्राइभरी लाइसैंस?‍”
   “सरकार हम हरबाह छी।‍” बकझक करैत देखि‍ गेटक चि‍तकबरा सि‍पाही आबि‍ भुटकुमराक गट्टा पकड़ि‍ घी‍चने-घी‍चने सीमासँ बाहर कऽ देलक।
  भुटकुमरा बुदबुदाएल- “‍कोन लपौरीमे पड़ि‍ गेलौं।”
(साभार विदेह विहनि कथा अंक www.videha.co.in )

1 comment: