Thursday, April 5, 2012

विहनि कथा- बढ़ि‍या गप्प



गोपी मड़र सभ बापूत दुआि‍रपर बैसल अछि‍। दि‍न ठेका गेल छै। चारि‍ दि‍नक बाद बेटाक बि‍याह हेतै। नवका समधी दहेजक टका देवाक लेल आएल छै। गोपी मड़रक लबरा-भाए फोंकी लाल बाजल- “समधी जी, लेन-देनक गप्प  पहि‍ले फरि‍छाएल रहै छै से नीक। बि‍याहक कालमे जे दहेजक गप्पह उखड़ै छै, से तँ बुझू जे थुकम फझैति‍। एहि‍ठाम सभ समांग अपने छी। नि‍कालल जाए टाका।‍”
  “हँ, हँ ओहि‍क सम्बंन्ध।मे तँ कहबाक लेल आएल छी। कोनो तरहेँ कुहरैत।‍”
  फोकीलाल बाजल- “कतेक तँ बेटी बि‍याहमे मरि‍ जाइत अछि‍। अहाँ तँ कुहरैत छी। बढ़ि‍या गप्पव। नि‍कालल जाए।‍”
  समधी कहल- “बढ़ि‍या गप्पग ई जे काल्हि‍ हमरा बेटीकेँ नौकरीक लेटर भेटि‍ गेल।‍”
  “अहाँक बेटीकेँ नहि‍, हमरा पुतौहकेँ। हमरासँ सम्ब्न्ध  भेलापर देखि‍यो फैदा। बढ़ि‍या गप्पप।‍”
  “बढ़ि‍या गप्पओ ई जे आब अहाँसँ बेसी सम्पसति‍बला आ नीक वर बि‍नु दहेजक बि‍याह करबाक लेल तैयार अछि‍।‍”
  “आ पहि‍ले कि‍यो नहि‍ पुछैत छल।‍”
  “अहुँ ते नहि‍ए पुछै छलहुँ। दहेजक लोभमे तैयार भेलहुँ। आब तँ हमरा बेटीक कमाइपर अहाँक बेटा पलत।‍”
  “अपन-अपन भाग्य । बढ़ि‍या गप्प ।‍”
  समधी बाजल- “‍आब जँ ई सम्बेन्धप करबाक अछि‍ तँ जतेक हमरा कहने रही ओतेक दहेज अहाँकेँ लगत काल्हि‍ टका लऽ कऽ हमरा दुआरि‍पर आऊ।”
  “ई कोन गप्पा।‍”
  वि‍दा होइत समधी बाजल- “टका लऽ कऽ आबि‍ तँ बढ़ि‍या गप्पज। नहि‍ लऽ कऽ आबि‍ तइयो बढ़ि‍या गप्प ।‍”

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