Wednesday, June 5, 2013

पियक्कर

विहनि कथा-55
पियक्कर

ओ पियक्कर छलै ।भरि दिन पिबिते रहै ।सदिखन तलमलाइत रहै ।कतेको बेर नालीमे खसल, सड़कपर ओंघराएल भेटलै ।मुँहक दुर्गन्धक चलते लोक ओकरासँ दूर रहै ।घर-परिवारसँ जलखैयो नै भेटै ओकरा ।लोक ओकरा गरियाबैत रहै, शरापैत रहै ।मुदा आइ. . . . . . . ।
आइ अपन साहस देखेलकै ओ ।भरल बजारमे नवालीक लड़कीक इज्जत बचेलकै, मुदा मारल गेलै ।खूने-खूनाम भऽ गेलै माँझ चौबटियापर ।छटपाइत मरि गेलै ।आब समाजक कमजोरहा, हिजड़ा सब ओकर बड़ाइ करै छै, मुदा ओ लड़की भगवानसँ माँगि रहल छै जे एहने पियक्कर भऽ जाइ ई दुनियाँ ।

अमित मिश्र

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