“बतीयासँ लदल झिमनीक लत्ती छल, काइल्ह टिकलागाम
बाली अप्पन कनखी आँखिसँ देख कि लेलनि राति भरिमे सभटा बतीया गलि गेल।“
“की माए अहुँ कएहेन-कएहेन बातपर विश्वास करैत छी
। ककरो तकलासँ बतीया वा लत्ती किएक गलतै । ई एनाहिते बदलैत मोसम, कीड़ा आदिक
प्रकोपे बतीया गलि गेल हेतै ।“
“हाँ, तूँसभ दू अक्षर पढ़ि की लेलह सभटा तूँहीँ सभ
बुझै छहक । हम सभ तँ जेना रौदेमे अप्पन केश पका लेलहुँ, आब तूँहीँ सभ सीखेबअ कि
नीक आ की बेजए ।“
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