“की यौ ललनजी एना टुकुर टुकुर की तकै छी ?”
अप्पन गामक मुँहलागल भाउजक मुँहसँ ई सुनि ललन
एकदमसँ सकपका गेला, जिनका कि बहुत कालसँ घुरि रहल छल ।
“नहि किछु नहि ।“
“धूर जाऊ ! इनार लग पिआसल
जाइ छै की पिआसल लग इनार । अहाँ एहन पहिल मरद
छी जकरा लग इनार चलि कए एलैए आ एना टुकुर टुकुर तकने कोनो पिआस मिझाइ छैक
की ? पिआस मिझाबैक लेल इनारमे कूदए परैक छै ।“
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