Tuesday, June 4, 2013

मजगूत डोरी

विहनि कथा-49
मजगूत डोरी

"नै, किन्नहुँ नै ।" एकटा युवक भरल पंचायतमे बाजि रहल छल "किछु भऽ जाए हम ओहि मौगी संग नै रहि सकै छी ।"
पंच द्वारा कारण पुछल गेलै तँ बाजल " ओ चौबीसो घण्टा बाल-बच्चामे लागल रहै छै ।बाल आश्रमसँ कखनो फुरसति नै होइ छै ।हम विआहक बादो एसगरे टौआइत छी ।"
गामक लोक ओकरा बड बुझलकै मुदा ओ ककरो बात नै मानलकै ।बेर-बेर तलाकक बात सूनि सरपंच कहलनि " तोरा की बुझाइ छौ तूँ विआहक बन्हन तोड़ि देबहीं ?"
" विआहक बन्हन तँ नै टूटतै मुदा पति-पत्नीक सम्बन्ध टूटि जेतै ।अलग-अलग रहबै तँ सब डोरी टूटिये जेतै ने?"
एते सूनि समवेत स्वरमे सब पंच बाजल "मानलियौ तूँ सबटा सम्बन्ध तोड़ि देबें मुदा एक बात मोन राख, समाजक डोरी जखन कसाइत छै तँ सबहक पहलमानी निकली जाइ छै ।ककरो हिम्मत नै छै जे समाजक मजगूत डोरी तोड़ि देतै ।"
जबाब सूनि युवक चुप भऽ गेल ।

अमित मिश्र

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