Monday, June 10, 2013

कुम्भ




दिनानाथ आ हुनक कनियाँक गप्प, “सुनै छीयैक गामक बहुत रास लोग कइल्ह कुम्भ असनान लेल जा रहल छैक ।“
“हुँ ।“
“चलू ने अप्पनो सभ एहि बेर कुम्भ भए आबी ।“
“नहि, हम तँ नहि जाएब अहाँकेँ मोन होइए तँ चलि जाउ हम व्यबस्था कए दए छी ।“
“अहाँ किएक नहि जाएब ।“
“हमर तँ कुम्भ साक्षात हमर घरेमे छथि, हिनका छोरि कए हम कोना जा सकैत छी ।“
दिनानाथजी अप्पन ९५-१०० बर्खक माए बाबूक तन-मनसँ सेवामे लागल छथि  

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