Saturday, June 8, 2013

बड़साइत

विहनि कथा-68
बड़साइत

- देखहीं गै, केहन जुलुम भऽ रहल छै ।रधिया आइ बरसाइत पूजऽ एलै हेँ ।
- जा. . .एहनो कतौ भेलैए ।विधवा कतौ बड़साइत पुजलकैए ।
- गै रधिया ।लाज-शरम नै छौ ।पहिरने छें उजरा साड़ी आ चललें बड़साइत पुजऽ ।
- यै काकी, बाबी, भौजी, हम किए नै पूजि सकै छी ?विधवा छी ताहिसँ की?लोक बड़साइत पूजै छै पतिक दीर्घायु हेबाक लेल ।हमहूँ तेँ पूजै छी ।
- मुदा तोहर पति तँ मुइल छौ ।
- यै काकी अपन पतिसँ हम बड प्रेम करै छी ।ओ हुनक स्वर्गक जिनगी दीर्घ होइ आ यमरामक कृपा रहै हुनकापर तेँ हम पूजब ।अहाँ सब तँ हुनका जीबैत धरि पूजब मुदा हम अपन जिनगी भरि ।

अमित मिश्र

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