Friday, June 7, 2013

अहिबातक सुख



दरभंगा रेलवे स्टेशन। दरभंगासँ दिल्ली जेबाक ट्रेन। द्वितीय श्रेणीक वातानुकूलित डिब्बा। हमर सामनेक सीटपर एकटा बुढ़ जोड़ा। सीटक निच्चाँ  आ खाली तेसर सीटपर करीब पाँच-छहटा झोरा मोटरी रखने। शाइद गामसँ दिल्ली अप्पन बेटा-बेटी वा पोता-पोतीसँ भेट करै लेल जा रहल छथि। बुढ़ीक सोनसन उज्जर केशसँ भरल माथपर सेनुरक लाल रेखा चमचमाइत। आँखिपर सुनहरी चौकोर फ्रेमक सुन्नर चश्मा। पढ़ीया नुआक एकटा खुटसँ अप्पन नाक झपने। जेना ने ट्रेन चलब शुरू भेल बुढ़ी अप्पन नाकसँ नुआक खुट हटा सीटक निच्चासँ एकटा झोरा निकाललनि। झोराक चेन खोलि ओहिमे सँ एकटा दू खानाक बड़काटा टिफिन डिब्बा निकाइल क सीटपर रखला बाद झोराकेँ फेरसँ सीटक निच्चा राखि लेलनि। टिफिन डिब्बा खोलि कए ओहिमे सँरल माँछक एकटा खण्ड निकालि, कांट बिछ्ला बाद अप्पन पतिकेँ देलनि। फेर एककेँ बाद एक दूटा खण्ड अप्पने खएली। खाए कऽ, टिफिन डिब्बा निच्चा झोरामे राखि आँखिसँ चश्मा निकालि खोलमे रखला बाद ओकरो बैगमे राखि फेरसँ पहिने जकाँ नुआक पाइढ़सँ नाक झँपैत अप्पन दुनू पेएर सीटपर मोरि कए जाँत जकाँ गोल होति आँखि मुनि सुइत रहली।
ई अहिबातक सुख नहि तँ अओर की थिक।  
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जगदानन्द झा 'मनु'

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