Saturday, June 8, 2013

तियाग

विहनि कथा-66
तियाग

एहि बेर कोसी मानै बला नै छलीह ।अपन बाँहि खोलि पानि रूपि ममता परसि रहल छलीह ।एहि बाढ़िमे एकटा खऽढ़ो नै बचलै ।मात्र दूर-दूर धरि ढेह मारैत पानिक पथार बचल छलै ।लोक प्राण बचबै लेल जँहि-तँहि शरणार्थी बनल छल ।डूबल बाधक बीच एकटा चौकी भासल जाइत छल ।ओहि चौकीपर 14 सालसँ 6 साल धरि चारि टा नेना आ एकटा माए बैसल छल ।पानिक प्रवाह संग भासैत चौकी आ सुखाएल ठोर बाधकेँ करुण कऽ देने छल ।एकाएक चौकी डगमगाए लागलै ।पानिमे चौकी फूलि गेल छलै ।ओजन बढ़लै तें डूमऽ लागल ।ई देख माए सब नेनाकेँ एक ठाम कऽ अपने बीच धारमे कूदि गेल ।क्षणेमे पानिक कोरामे समा गेलै ।ओकर तियागपर आकाशो तमससँ गड़गड़ाए लागल ।मेघो कानऽ लागल छल ।

अमित मिश्र

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