आइ कतेक बर्खक बाद हम अप्पन गामक फूसक घरमे आपस
एलहुँ | मोन एतेक प्रशन्य कि घरसँ बाहर निकलैक मोने नहि भए रहल छल | घरक अखरा चौकी,
दिल्लीक दू बएड रुमकेँ पलंगक एक बीत मोटगर गद्दासँ बेसी सुखदायी लागि रहल छल | आँखि
मुनैत माँतर सपनाक इन्द्रधनुषी मेघमे मन विचरण करए लागल | भिनसर नीन तुटल तँ बर्खो
बाद बुझलहुँ नीन एकरा कहैत छै | दिल्लीक पन्द्रह हजार रुपैयाक भाराक घर जकाँ ओतुका
नीनो भाराक | धन्यवाद हमर कम्पनीक मंदी आ हरताल जे हम अप्पन घरमे अप्पन चौकीपर
अप्पन नीनसँ सुतलहुँ |
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