Tuesday, June 4, 2013

फुलझड़ी

विहनि कथा-45
फुलझड़ी

राजो बाबू दुनू प्राणी सदिखन उदासीमे डूमल रहैत छलथि । पहिल तँ सए बिघाक खेती सम्हारैमे परेशानीक चलते आ दोसर निःसन्तान हेबाक दर्द ।ताहिपर गौआँ सब निःसन्तान कहि घावपर नोन छीट दै ।अन्तमे दुनू प्राणी एकटा बचियाकेँ गोद लेबाक निर्णय लेलनि ।आब समाजक ठीकेदार सब घुटकाबऽ लागलनि जे जखन दोसरेकेँ जनमलकेँ अपनेलऽ तँ बेटाकेँ अपनैतऽ ।बेटीसँ की अचार बनेबऽ ।सुनैत-सुनैत राजो बाबूक सबुरक बान्ह टूटि गेलै ।ओ भरल चौकपर कहलनि " ई हमर बेटी नै अछि, ई फुलझड़ी अछि ।इएह हमर श्राद्ध कर्म कऽ बेटापर आश्रित धर्मकेँ जारि कऽ स्वाहा करत ।ई फुलझड़ी बम बनि उड़ा देत बेटा-बेटीक अन्तर ।देख लिहअ हमर बेटी दुनियाँमे नाम करत ।"
राजो बाबूक चुनौतीकेँ थपड़ी बजा सब स्वागत केलक ।

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