“यौ काका, माए बड़ जोड़ दुखीत छै, अस्पतालमे भर्ती
करबअ परतै, कने अहाँ दस हजार रुपैयाक व्यबस्था कए दिअ पाँच छह महिनामे हम दए देब।”
“तोरासँ तँ किछु नुकाएल छहे नहि जे हमर हालत आइ
काल्हि केहन अछि मुदा हाँ भीड़परक जामुनक गाछ जँ बेच दहक तँ हम मैलाम बलासँ गप्प
करी ।”
“बेचक तँ कोनो हर्ज नहि मुदा काका.... ओ जामुनक
गाछ तँ कहूना पच्चीस हजारक हेतै ।”
“हाँ हाँ किएक नहि पच्चीस की तीसो भेट सकैत छैक
मुदा ओहि लेल पाँच छह महिनाक चर्च आ इन्तजार दुनू चाही मुदा तोरा एखने बेगरता छ
एतेक जल्दी तँ कियो दसो दऽ दिए तँ बड़ छैक ।”
“एखन एहिना कतौसँ इन्तजाम कए दिअ, गाछ बेचहे
परतै तँ बादमे नीक पाइ भेटलापर बेच लेब ।”
“से तँ बेस मुदा हमरा एखन कोनो दोसर उपाय कहाँ
देखा रहल अछि ।”
“पाइ तँ आइए काल्हिमे चाही ।”
“हाँ ! भौजी लग किछु सोना होइन तँ....”
“सोना तँ सभटा पहिने बाबूक काजमे बिका गेलै ।
ठीक छै अहाँ साँझ धरि देखियौ, हमहूँ देखै छीऐ नहि किछु हेतै तँ जामुन गाछ तँ छैहे ।”
भोरे भोर माए केर
अस्पतालमे भर्ती भए गेलनि । चारिटा जोन भीड़ परहुक जामुनक गाछ काटैमे लागल । ओमहर
काका अप्पन बैंकमे पन्द्रह हजार रुपैया जमा करबैत । *****
जगदानन्द झा 'मनु'
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