Wednesday, June 5, 2013

पशंदक काज




दिनानाथजी आ हुनक कनियाँक बिचक गप्प-सप्प-   
“सुनै छीऐ, अहाँक दुनू धिया पुता कखनो नहि पढ़ैए, दिन भरि नहि जानि कथी कथीमे लागल रहैए |”
“हूँ |”
“की हूँ, खाली बसहा बरद जकाँ मूरी दोलबैत रहै छी | अहाँकेँ तँ कोनो चिन्ते नहि, दुनियाँ कतए जा रहल छै  कनीक  धियो-पुतापर धियान देबै |”
“की धियान दियौ, अहाँ दै छीऐ ने भऽ गेलै |”
“भऽ की कपार गेलै ? दुनूमे सँ कियो हमरा मोजर दैए, बेटा अहाँक सदिखन कम्पुटरमे लागल रहैए तँ बेटीकेँ ड्राइंगेसँ फुरिसत नहि | किताबकेँ तँ केखनो छुबितो नहि जाइ छै |”
“हे भागबान ! अहाँ किए एतेक आमील पीने छी, भने दुनू अप्पन-अप्पन पशंदक काजमे तँ लगले रहै छै | आइ जे सचिन तेंदुलकर केर गारजन कहितै पढ़ाइ कर वा लता मंगेशकर केर गारजन कहितै जे पढ़ाइ कर तँ की देशकेँ सचिन तेंदुलकर आ लता मंगेशकर भेटतै ? कएखनो नहि, हाँ दूटा कलर्क वा चपरासी जरुर भेटगेल रहितै |”

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