गामक बाहर, एक कातमे दूटा
फूसक घर । एकटा घरक बाहर,
एकटा बुढ़ अप्पन
कुशल हाथसँ लाल पियर बांसक खपचनीकेँ ढाकी सूपक आकार देबैमे लागल ।
शहरी बेश भूषामे एकटा
पाँच बर्खक नेना कतौसँ दौरल आबि चूप चाप कनी काल धरि निघुरि कए अप्पन ठेंहुनपर हाथ
रखने देखैत रहल, ढाकी-सूप कोना कए
बनि रहल छैक ।
अनचोके बाजि उठल, “बाबा अहाँक लग
कोल्ड ड्रिंक अछि ।”
“ई कोल्ड ड्रिंक की है छै ।”
“अरे बाबा ! लिम्का पेप्सी माजा नहि बुझै छी ।”
“एहि नामक तँ कोनो धिया पुता हमरा घरमे नहि अछि ।”
ओ नेना बुढ़क एहि तरहक
गप्प सुनि चूप चाप कनी काल धरि हुनकर मुँह दिस देखैत आँगा बाजल, “पानि ।”
“हाँ पानि तँ अछि मुदा अहाँ हमर हाथक पानि कोना पीब, देखैमे तँ कोनो
नीक घरक नेना लगै छी ।”
“किएक अहाँ हाथक पानि नीक नहि होइए ।”
“नहि बौआ, अहाँ हमरा एहन छोट लोकक हाथसँ पानि कोना पीब जँ अहाँक माए
बाबू बुझि जेता तँ हमरा खातीर अहुँकेँ बात सुनअ परत ।”
ओ नेना हुनक एहि तरहक
गप्प सुनि अबाक किएक तँ जाहि शहरसँ ओ आएल छल ओहिठाम एहि तरहक कोनो व्यबस्था नहि
छलै । ताबएतमे ओहि बच्चाक माए बाबू आबि गेला । नेनाक बाबू ओहि बुढ़केँ पाएर छू गोर
लगलनि । बुढ़ मुँह उठा कए धियानसँ देखै छथि तँ हुनक बेटा मोहन जे सात बर्ख पहिने
गाम छोरि शहर चलि गेल रहे ।
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