Tuesday, June 4, 2013

घमण्डक बुकनी

विहनि कथा-48
घमण्डक बुकनी

एक बेर चन्ना आ धरतीमे बड भरिगर झगड़ा फँसि गेलै ।दुनू अपना-आपकेँ पैघ बतबैमे लागल छलै ।चन्ना कण्ठ फाड़ैत बाजल "रे धरती, हमरा लग तोहर कोन पूछ छौ ।हम तोरा इजोत आ शीतलता दै छियौ तेँ हम पैघ छी ।"
ईटाक जबाब पाथरसँ दैत धरती बाजल " हम छी तेँ लोक तोहर पूजा करै छौ ।धरतीये परहक लोक तोहर बड़ाइ करै छौ ।तूँ कतबो शीतल रह मुदा ककरो अनुभव नै हेते तँ सब बेकार छै ।हमरे चलते तोहर इज्जत छौ ।"
दुनूक झगड़ा देख केन्द्रमे बैसल अभिभावक रूप सूरज अपन इजोत देनाइ बन्द कऽ देलक ।चन्ना आ धरती दुनू त्राहीमाम करऽ लागल ।तखन सूरज बाजल " रे ! तूँ सब कतबो कूदि ले मुदा माए-बापसँ पैघ नै भऽ सकै छेँ ।हम छी तँ तोहर आसतीत्व छौ ।"
सूरजक बात सूनि दुनू लाजसँ घामे-पसीने भऽ गेल ।दुनूक घमण्डक बुकनी भऽ गेल छल ।

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