Saturday, June 15, 2013

वारेंट



रातिक आठ बजे, दूटा पुलिस कांस्टेबल आबि घरक गेटकेँ पुलिसीया ठेंगासँ खटखटा कए अबाज दैत, “रजिया बानो ।“
“जी ।“ भीतरसँ एकटा २३-२४ बर्खक सुन्नर युवती बाहर आबि ।
“अहाँ, रजिया बानो ।“
“नहि, हमर माए रजिया बानो, की बात कहुँ ।“
“हुनकापर कम्पलेन छनि थाना जाए परतैन्हि।“
“किएक ।“
“ओ ओतए जा कए पत्ता चलत,  बड़ा साहबक हुक्म छनि ।“
“अपने लग वारेंट अछि ।“
“नहि ।“
“तहन मुँह उठा कए किएक आबि गेलहुँ, भारतीय दण्ड संहिताक हिसाबे सभसँ पहिने अहाँ लग वारेंट होवा चाही, दोसर कोनो महिलाकेँ साँझकेँ बाद थाना नहि लए जा सकै छी, तेसर यदि अहाँ वारेंट लएयो कऽ दिन देखार अबै छी तँ एकटा महिलाक गिरफदारी एकगोट महिले कांस्टेबल लए सकैत अछि, पुरुष नहि । (दुनू कांस्टेबल काठक उल्लू जकाँ सुनैत, आगू) पुलिस कांस्टेबल होबैक नाते अपनेकेँ एतेक कानून तँ बुझले होएत आ नहि तँ हम एखने १०० न०पर पुलिस कंट्रोल रूममे रिपोर्ट दर्ज कराबै छी, डिपार्टमेंट अपने अहाँ दुनूकेँ कानून बता देत ।“   

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जगदानन्द झा 'मनु'

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