“बौआ पैघ भए कऽ अहाँ की बनब ?”
“मनुख |”
नेनाक एहि उत्तरपर चारूकात ठहाका पसरि गेल |
मनुख ! मनुख तँ हम सभ छीहे, मनुख बनक बेगरता की ? मुदा नेनाक आखर ‘मनुख’ हमर
हृदयमे तऽर धरि धसि गेल | की आइ काइल्ह हम मनुख, मनुख रहि गेलहुँ ?
हमर सभक भीतर मनुखताक कोनो अवशेष एखनो बचल अछि ?
मनुख की ? खाली मनुखक कोखिसँ जन्म लेने भऽ
गेलहुँ ?
जन्म लेलहुँ, नम्हर
भेलहुँ, ब्याहदान भेल, दू चारिटा बच्चा जनमेलहुँ, ओकर लालन-पालन केलहुँ, बुढ़
भेलहुँ, मरि गेलहुँ, इहो जीवन कोनो मनुखक जीवन भेलै | आइ मरलहुँ काइल्ह दुनियाँ तँ
दुनियाँ १३ दिन बाद अप्पनो बिसरि गेल | मनुख जीवन तँ ओ भेल जेकर मृत्यु नहि हुए |
मृत्यु देहक होइ छैक, कमसँ कम नामक मृत्यु तँ नहि होइ, नाम जीबैत रहै, ओ भेल मनुखक
जीवन |
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