Tuesday, June 4, 2013

दू लाख महिना



माए तामससँ लाल भेल, “मार कपर जडुआ, बी०ए० एहि दुआरे करेलीयहुँ जे पढ़ि लिख कऽ गाममे महिस पोसे | देखही ललनमाकेँ मुम्बईमे  नोकरी करै छै, भोकना दिल्लीमे नोट छाइप रहल छै, ओ रमेशरा कलकत्तामे डिलर बनि गेलै  आ ई एतेक पढ़ि लिख कए कहैत अछि गाममे रहत, रहत तँ रहत ओहिपर महिस पोसत |”
माए सुनू, गाम आब ओ गाम नहि रहलै आ परदेश परदेशे होइ छै, ओहिठाम कतबो कियो रहि जेए अप्पन नहि होइ छै | जाहिखन केकरो अप्पन धरतीपर गुजर नहि होइ छै तखने परदेश जाइए |”
बेस से तँ ठीक मुदा ई महिस ? गामपर रहबअ तँ  महिसे पोसबअ ?”
माए एहिमे खरापीए की छै आ देखू दिल्ली मुम्बई जाएब किएक पाइ लेल, कतेक तँ पन्द्रह बीस हजारक नोकरी, खाइत पीबैत बचत कतेक चारि पाँच हजार मुदा की चारि पाँच हजारसँ जीवन चलि जेतै |”
तँ की महिससँ जीवन चलि जेतै |”
पढ़ूआ काकाकेँ एकटा महिससँ जीवन चललनि की नहि |”
तँ की हुनके जकाँ भए जेबअ |”
सुनू हमर प्लान, हम पाँचटा नीक नस्लक महिस आ संगे एकटा नोकर राखि कए एहि काजकेँ करब | दूधकेँ कतेक बेगरता आ महगाइ छै से तँ बुझिते छीऐ | आब देखू एकटा नीक नस्लक महिस चालीस लिटर रोजकेँ एवरेज दूध देतै तँ पाँचटा कतेक भेलै ४० गुने ५ = २०० लीटर रोजकेँ | आब पाइ, चालीसो रुपैए लीटर बेचब तँ २००*४०= आठ हजार रुपैया रोजकेँ अर्थात महिनाकेँ दू लाख चालीस हजार, चालीस हजार खरचो भए गेल तँ दू लाख महिनाक आमदनी, गोवर काठी, परा पारी अलग |”
गे माए ई केना भऽ जेतै, दूऽऽऽऽऽऽ लाख रुपैया महिना |” 
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जगदानन्द झा ‘मनु’


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