Monday, June 10, 2013

पूर्वजक मुक्ति



आचार्यजी पुराणक कथाक व्यख्यान करैत,ब्राम्हन भोजन करेलासँ सात पूर्ख धरि मुइल पूर्वजक आत्माकेँ शांति आ जन्म मरणकेँ फेरीसँ मुक्ति भेट जाइ छैक मुदा ब्राम्हन चयनमे किछु सावधानी रखबा चाही। ब्राम्हन ओ जे माँस मदिरासँ दूर होथि। ब्राम्हन ओ जे झूठ, लोभ आ अहंकारसँ बचल होथि, जे भोर साँझ आन ब्राम्हन कर्म नहि तँ कमसँ कम गायत्री जाप अवस्य करैत होथि आ जिनका वास्तबमे भोजनक आवश्कता होइन, भरल पेटकेँ भरलासँ की लाभ।"
आचार्य जीक गप्प सुनि हम सोचै लगलहुँ, “कि आजुक समयमे एहन ब्राम्हन भेटनाइ सम्भब आ कदाचित भेटो गेला तँ की हुनका भोजनक आवश्यकता हेतैन ? तँ की हमर पूर्वजक मुक्ति आब नहि होएत ?”

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