आचार्यजी पुराणक कथाक व्यख्यान करैत, “ब्राम्हन भोजन करेलासँ सात
पूर्ख धरि मुइल पूर्वजक आत्माकेँ शांति आ जन्म मरणकेँ फेरीसँ मुक्ति भेट जाइ छैक
मुदा ब्राम्हन चयनमे किछु सावधानी
रखबा चाही। ब्राम्हन ओ जे माँस मदिरासँ
दूर होथि। ब्राम्हन ओ जे झूठ, लोभ आ
अहंकारसँ बचल होथि, जे भोर साँझ आन ब्राम्हन कर्म नहि तँ कमसँ
कम गायत्री जाप अवस्य करैत होथि आ जिनका वास्तबमे भोजनक आवश्कता होइन, भरल पेटकेँ
भरलासँ की लाभ।"
आचार्य
जीक गप्प सुनि हम सोचै लगलहुँ, “कि आजुक समयमे एहन ब्राम्हन भेटनाइ
सम्भब आ कदाचित भेटो गेला तँ की हुनका भोजनक आवश्यकता हेतैन ? तँ की हमर पूर्वजक
मुक्ति आब नहि होएत ?”
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