103. समानान्तर
"मालिक, अहाँसँ किछु कहबाक अछि ।"अकलू, राधे बाबूकेँ देख बाजल ।राधे बाबू पुछलनि "कह की बात छै ?"
"मालिक, परसू हमर बेटीक विआह छै ।अहाँक आज्ञा भेटितै तँ अहाँक बाड़ीमे टेन्टक सरञ्जाम करितियै ।"ई कहि अकलू धरतीपर बैस गेल ।
राधे बाबू कुर्सीसँ उठि कऽ ओकरा कहलनि "ई की करै छऽ ?आबऽ कुर्सीपर बैसऽ ।" अकलूकेँ लजाइत देख राधे बाबू कहलनि "आब जाति-पाति नै छै ।आब सब समानान्तर छी तेँ हमरे संगे तूँहूँ कुर्सीपर बैसऽ ।"
विआहमे राधे बाबू बरियातिक स्वागत कऽ रहल छलाह ।
अमित मिश्र
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