87. उदास कोहबर
कोहबर मने प्रेमक अथाह सागर ।ताहिमे नवकनियाँ लऽग बैसल श्याम ।मोने-मोन रोमाञ्चित होइत घोघ उठेलक, मुदा ई की . . . कनियाँ छिहुलि कऽ हटि गेली ।श्याम किछु बुझितए ताहिसँ पहिने कनियाँक ठोर खुलल ।कण्ठसँ स्वर बहराएल "हमरा जुनि छूबू ।हम दोसरक अमानत छी ।हमर किओ आनसँ प्रेम करै छी ।"
श्यामक देहपर हजारो कोठी एक्कै बेर खसि पड़लै ।ओ कननमुँह केने बाजल "ई बात अहाँ एखन किए बता रहल छी ?पहिने बतैतौं तँ हमर जिनगी बर्बाद नै होइतै ।"
कनियाँ कहलनि "एहि लेल हम क्षमाप्रार्थी छी ।ओ आन जातिक अछि तेँ माँ-बाबू नै मानलनि ।हुनका सब बुझल छलन्हि ।जानि-बूझि कऽ अहाँक घेंटमे बान्हि देलनि, मुदा हम अहाँ संग जीवन नै काटि सकब ।माँफ करू... जाइ छी हम... टा...टा..बाइ..."
श्यामक लेल ई पावन कोहबर उदास लागऽ लागलै ।ओ गरिया रहल छल सासु-ससुरकेँ जे एकर जीवन बर्बाद करबाक जिम्मेदार छल ।
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अमित मिश्र
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