“अरे ! अरे ! रुक ई की भऽ रहल छै ! तूँ सभ एक
संगे एतेक रास सामूहिक आत्मदाह !”
“हम सभ प्रेम दीवानी, प्रेमकेँ अंतिम छोर पावै
लेल जा रहल छी मुदा अहाँ अपस्वार्थी मनुख एहि प्रेमकेँ नहि बुझब अहाँ सभ तँ प्रेमोमे
नफा नुकशान तकै छी ।“
डिबियाक लोऽपर भन्नाइत
फतिन्गाक झुण्डमे सँ एकटा धीरेसँ हमर कानमे भनभना कए कहि डिबियाक आँचपर जा जरि गेल
।
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