Saturday, June 8, 2013

चौक

69. चौक

दिल्लीमे पढ़ाइ-लिखाइक बाद नोकरी पकड़ैत धरि दस वर्ष गामसँ दूर रहलौं ।एते दिन बाद गामक एकपैरियाक दर्शन भेल ।मोन होइ छल सबटा पुरना इयादि झट दऽ ताजा कऽ ली ।अपन बालमीत रौशनसँ कहलियै " यार, चल ने चौकपर ।"
" चौकपर जा कऽ की करबहीं ?" ओ चौंकैत बाजल ।
"कने दुर्गा जीक दर्शन कऽ लेबै आ बौना दोकानपर इलाइची बला भाँग खा लेबै ।बड दिन भऽ गेल ।"
"मीता आब ओ चौक नै बचलै जे तूँ देखऽ चहै छें ।चारि-चारि टा शराबक दोकान खुलि गेलै ।उचक्का सभक बैसकी बनि गेल छै चौक । दुर्गा मंदीरक प्रागंन मधुशाला बनल छै।आब नीक मनुख ओतऽ नै जाइ छै ।"
रौशनक बात सूनि चौक आ मंदीरक दुर्भागपर कना रहल छल हमरा ।

अमित मिश्र

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