Sunday, June 16, 2013

व्यबस्था



गामक बाहर, एक कातमे दूटा फूसक घर । एकटा घरक बाहर, एकटा बुढ़ अप्पन कुशल हाथसँ लाल पियर बांसक खपचनीकेँ ढाकी सूपक आकार देबैमे लागल ।
शहरी बेश भूषामे एकटा पाँच बर्खक नेना कतौसँ दौरल आबि चूप चाप कनी काल धरि निघुरि कए अप्पन ठेंहुनपर हाथ रखने देखैत रहल, ढाकी-सूप कोना कए बनि रहल छैक ।
अनचोके बाजि उठल, “बाबा अहाँक लग कोल्ड ड्रिंक अछि ।
ई कोल्ड ड्रिंक की है छै ।
अरे बाबा ! लिम्का पेप्सी माजा नहि बुझै छी ।
एहि नामक तँ कोनो धिया पुता हमरा घरमे नहि अछि ।
ओ नेना बुढ़क एहि तरहक गप्प सुनि चूप चाप कनी काल धरि हुनकर मुँह दिस देखैत आँगा बाजल, “पानि ।
हाँ पानि तँ अछि मुदा अहाँ हमर हाथक पानि कोना पीब, देखैमे तँ कोनो नीक घरक नेना  लगै छी ।
किएक अहाँ हाथक पानि नीक नहि होइए ।
नहि बौआ, अहाँ हमरा एहन छोट लोकक हाथसँ पानि कोना पीब जँ अहाँक माए बाबू बुझि जेता तँ हमरा खातीर अहुँकेँ बात सुनअ परत ।
ओ नेना हुनक एहि तरहक गप्प सुनि अबाक किएक तँ जाहि शहरसँ ओ आएल छल ओहिठाम एहि तरहक कोनो व्यबस्था नहि छलै । ताबएतमे ओहि बच्चाक माए बाबू आबि गेला । नेनाक बाबू ओहि बुढ़केँ पाएर छू गोर लगलनि । बुढ़ मुँह उठा कए धियानसँ देखै छथि तँ हुनक बेटा मोहन जे सात बर्ख पहिने गाम छोरि शहर चलि गेल रहे । 

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