Saturday, June 15, 2013

भगवान सभक गप्प सुनै छथिन

मन्दिर जाएक रस्तामे, एकटा अबोध नेना अप्पन माएसँ, “माए, हमसभ मन्दिर किएक जा रहल छी ?”
“बेटा, मन्दिरमे भगवान सभक गप्प सुनि कए ओकरा पूरा करै छथिन ।“
“भगवान हमरो गप्प सुनथिन ?“ 
“हाँ बेटा ।“ 
“हम जे भगवानसँ माँगबनि से हमरा भेट जएत ?”
“हाँ बेटा जे अहाँ माँगब अवस्य भेट जएत ।“
ततबामे चलति चलति मन्दिरक मुख्यद्वार आबि गेल । द्वारिक सीढ़िपर सेकड़ो भिखमंगा भिन्न भिन्न  रंग रूपमे भिन्न भिन्न तरिकासँ  भीख मांगैमे लागल । भिखमंगाकेँ देखि नेना अप्पन माएसँ, “माए ई भिखमंगा सब तँ दिन भरि एतए मांगै रहैए  मुदा भगवान एकर सभक गप्प किएक नहि सुनै छथिन ।“

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जगदानन्द झा 'मनु'

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