Sunday, July 28, 2013

तृप्ति




“देह आ मोन दुनूमे सँ केएकर तृप्ति बेसी कठीन अछि ?”
“देहक तृप्ति तँ देहसँ पूरा भए जाइत छैक मुदा मोनक तृप्ति ? नहि मोनक सभटा इक्षा पूरा कएल जा सकैए आ नहि पूरा भेल इक्षासँ पूर्ण तृप्त भेल जा सकैए। देहक तृप्ति सिमित छैक मुदा ओकर पूरा करैक हजारो साधन। मोनक तृप्ति अनन्त छैक आ पूरा करैक कोनो पूर्ण साधन नहि। मोनक तृप्ति भेट जएबाक बाद देहक तृप्ति स्वतः पूर्ण भऽ जाएत छैक।”

1 comment:

  1. ई कथा नै भेल ।ई तँ प्रवचन जकाँ लागैत अछि ।

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