“जखन अहाँ नैहर गेल रही, अहाँक घरमे रंग बिरंगक
नव-नव मौगी सभ अबैत छल सम्हैर कए कियो कोनो दिन अहाँक दूल्हाकेँ उड़ा कए नहि लए
जेए।”
“हा हा....., अहाँ जुनि चिन्ता करू हम्मर ओहेन
नहि छथि।”
“अहाँ नहि बुझैछीऐ ! जएकर
कनियाँ एहिठाम नहि छैक तकर घरमे भला अनेरेकेँ बिना कोनो सरोकारे मौगीसभ किएक एतै आ
कोनो पुरुखकेँ कम नहि बुझिऐ। कुकुरक नाँगैर आ पुरखक सोभाब कहियो सोझ नहि भए सकै
छैक, जिम्हरे हरियरी देखलक उम्हरे गुरैक गेल।”
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